मंगलवार, 13 अक्टूबर 2015

Pradosh wrat katha/trayodashi wrat katah/pujan vidhi/

प्रदोष व्रत 

  • प्रदोष  व्रत तेरस / त्रयोदशी को किया जाता है। 
  • सांयकाल से रात्रि प्रारम्भ होने के मध्य की अवधी को प्रदोष काल कहते हैं। 
  • प्रदोष काल की  अवधी में भगवान शंकर की पूजा की जाती है। 
  • प्रदोष  व्रत करने वाला सदैव सुखी रहता है। 
  • सुहागन नारियों का सुहाग सदा अटल रहता है। 
  • सभी कामनाएं कैलाशपति शंकर पूरी करते हैं। 
  • सूत जी कहते हैं प्रदोष व्रत करने वाले को सौ गाय दान करने के बराबर फल प्राप्त होता है। 

पूजन विधि 

  • दिन भर निराहार रहकर प्रदोष  व्रत करना चाहिए। 
  • सूर्यास्त से 3 घंटे पूर्व स्नान कर लें। 
  • स्वेत वस्त्र धारण कर पूजन करना चाहिए। 
  • संध्या आरती के उपरान्त शिव जी का पूजन प्रारम्भ करें। 
  • जिस प्रकार सभी पूजन किये जाते हैं उसी क्रम में पूजन करें। 
  • मुख्य पूजन में शिवजी का ध्यान करना चाहिए। 
  • आरती करें। 

कथा 

एक समय भागीरथी के तट पर एकत्र ऋषि मुनियों के समूह में सूतजी महाराज पहुंचे। उपस्थित सभी संतों ने उन्हें प्रणाम किया। उन्होंने ने मुनिश्रेष्ठ से आग्रह पूर्वक पूछा कि कलिकाल में पापकर्म में लिप्त मानव भगवान शंकर की आराधना किस प्रकार करे कि वह मनोवांछित फल प्राप्त करते हुए संसार से मुक्त हो सके । ऐसा कौनसा व्रत है कृपा कर बताने का कष्ट करें। 
यह सुनकर सूतजी महाराज बोले - हे ऋषियों, आपकी प्रबल परहित भावना को ध्यान में रखकर मैं प्रदोष  व्रत के सम्बन्ध में बताता हूँ जिसके करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं। धन-सम्पदा वृद्धिकारक, दुःख-संताप नाशक, सुख-संतान प्रदान करने वाले तथा मनवांछित फलदायक उस  व्रत के बारे में सुनाता हूँ जो भगवन शंकर ने सती  जी को सुनाया था। जिसे मेरे गुरु वेद व्यास जी ने मुझे सुनाया।  
सूत जी कहने लगे कि स्नान कर निराहार रहकर शिव मंदिर में जाकर शिवजी का पूजन कर उनका  ध्यान करें। 
पूजन के दौरान त्रिपुण्ड का तिलक लगा, बेलपत्र चढ़ाएं, धुप दीप, अक्षत से पूजा करें। ऋतु फल अर्पित करें। ॐ नमः शिवाय मन्त्र का रुद्राक्ष की माला से जप करें। ब्राह्मण को भोजन करा सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा दें। इसके बाद मौन व्रत रखें। सत्य भाषण करें। हवन करें।  ॐ ह्रीं क्लीं नमः शिवाय स्वाहा से आहुति दें। पृथ्वी पर शयन करें श्रावण मास में इस व्रत का विशेष महत्व है। 
इस वृतांत को सुनाने के बाद ऋषि मुनियों के आग्रह पर प्रदोष  व्रत से लाभान्वित मनुष्यों की कथा सुनाते हुए सूतजी महाराज बोले - हे बुद्धिमान मुनियों, एक गांव में एक अति दीन ब्राह्मण की साध्वी पत्नी प्रदोष व्रत करती थी। उसके एक सुन्दर पुत्र था। एक समय स्नान के लिए जाते समय मार्ग में चोरों ने बालक को लूटने की दृष्टि से पूछा कि तेरी पोटली में क्या है ? बालक ने कहा इसमे माता द्वारा दी गई रोटी है। चोरों ने उसे जाने दिया। बालक एक नगर में पहुंचा और एक बरगद के वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगा। चोरों की खोज में निकले नगर के सिपाही बालक को चोर समझकर समक्ष ले गए। राजा ने उसे कारावास दे दिया। उसी अवधी में बालक की माता प्रदोष व्रत कर रही थी। इस कारण राजा को स्वप्न में दिखा कि वह बालक चोर नहीं है उसे छोड़ दो अन्यथा तेरे सम्पूर्ण वैभव नष्ट हो जाएगा। प्रातःकाल राजा ने बालक मुक्त करके माता पिता को बुलवाया औरऔर उनको ५ गाँव दान में देकर ससम्मान विदा किया। भगवान शिवजी की कृपा से अब वह परिवार आनंद पूर्वक रहता है। 
हे शिवजी महाराज जैसे दरिद्र ब्राह्मण का उद्धार किया वैसे ही सबका भला करना। 
इस कथा के बाद गणपति की कोई भी कथा सुने। 

अनुकरणीय सन्देश 

  • श्रद्धापूर्वक किया गया तप व्यर्थ नहीं जाता है। 
  • समूर्ण जांच करने के बाद ही किसी को दंड देना चाहिए। 

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