रविवार, 9 फ़रवरी 2014

puja, wat,upwas, kathaye aur unake sandesh - shriganeshji ki kahaniyan



श्रीगणेशजी की कहानियां 

सामान्यतः  प्रत्येक कथा के बाद श्रीगणेशजी (विनायकजी/गणपतिजी) की एक लघु कथा कही जाती है. ऐसी ही कुछ कथाएं आगे के ब्लॉग में दी जाएंगी. 

कहानी -1 वृद्धा ने खीर बनाई

एक बार  बिन्दायकजी महाराज छोटे बालक का रूप धर कर  चुटकी भर चांवल तथा एक चम्मच में दूध लेकर खीर बनवाने के लिए घर-घर भटक रहे थे. कोई भी महिला उतनी कम सामग्री से खीर बनाने के लिए तैयार नहीं हो रही थी उलटा उसका मजाक बना रही थी. एक बूढी माई से उस बच्चे  की परेशानी देखी नहीं गई. उसने बालक से सामग्री लेकर खीर बनाने के लिए छोटीसी तपेली ली, पर बालक बोला, " माई, बड़ी तपेली लो." माई बोली, " अरे बेटा, इतनीसी सामग्री के लिए तो यह तपेली भी बहुत बड़ी है." पर बालक की जीद तथा उसका मन रखने के लिए बड़ी तपेली ले ली. अब बालक बोला, " अच्छा माई, आप खीर बनाओ मैं बाहर खेल कर आता हूँ."
माई ने खीर चूल्हे पर चढ़ादी. अचानक पूरी तपेली खीर से भर गई. ये देखकर माई चकित रह गई. खेर वह बालक का इन्तजार करने लगी. जब बहुत देर हो गई तो उसे भी खीर खाने की ईच्छा हुई. उसने सोचा कि यह अच्छा नहीं होगा. उसने मन ही मन गणपतिजी का स्मरण कर खीर खाने के लिए उनको आमंत्रित किया. फिर खुद खीर खाने लगी. कुछ ही देर में विन्दायकजी  आ गए. माई ने बालक रूपी गणेशजी को खीर खाने के लिए कहा. बालक बोला, " मैंने तो खाली." माई ने कहा, " अरे ! झूंट क्यों बोलता है,मैंने तो इतनी मेहनत से बनाई है, और यहाँ से उठकर कहीं गई भी नहीं, तो तूने खीर कहाँ से खाली?"  "माई जब आपने मुझे याद कर खीर खाई तभी मैंने भी खाली. माई, आप बची हुई खीर सबको खिलादो. " बालक बोला. अब तो माई को पक्का  विश्वास हो गया कि हो न हो यह स्वयं साक्षात गणपति ही हैं. उसने गणेशजी को प्रणाम किया. गणेशजी ने उसे आशीर्वाद दिया कि तेरी सात पीढ़ियों तक धन-धान्य की कोई कमी नहीं रहेगी. यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए. वृद्धा का घर धन-धान्य से भर गया.
हे गणेशजी महाराज जैसा उस माई को दिया वैसा ही सभी को देना.

अनुकरणीय सन्देश -

  • कोई भी आपसे सहयोग मांगे तो अपनी सामर्थ्य के अनुसार अवश्य करें.
  • भोजन करने से पूर्व भगवान का आह्वान आवश्य करें.

  • कहानी -2  बुद्धिमान वृद्धा 

एक गरीब अंधी वृद्ध माई नित्य गणेशजी की पूजा पूर्ण श्रद्धा के साथ किया करती थी. उसकी इस आराधना से प्रसन्न होकर गणेशजी ने उसे दर्शन देकर  वर माँगने के लिए कहा. माई ने कहा मुझे तो मांगना नहीं आता है. गणेशजी ने कहा, " मैं कल फिर आउंगा, तुम अपने बेटे-बहु से विचार-विमर्श कर तय कर लेना कि क्या मांगना है." यह कहकर गणेशजी अंतर्धान हो गए. माई ने जब पूछा तो बेटे ने धन, बहु ने पोता तथा पड़ोसन ने अपने लिए अच्छा स्वास्थ्य माँगने की सलाह दी. माई ने सोचा कि सबने अपनी अपनी आवश्यकतानुसार मांग रखी है. क्यों नहीं, मैं ऐसा कुछ मांगू जिससे सभी की ईच्छा पूरी हो जाए. दूसरे दिन जब गणेशजी आए तब माई ने चतुराई से कहा- " हे गणेशजी मैं अपने स्वस्थ शरीर में अपने बड़े से महल में सोने के चम्मच-कटोरी से अपने पोते को दूध पिलाती हुई देख सकूँ तथा मेरे सुहाग एवं भाई-भतीजे  सहित पूरा परिवार मेरे साथ सुखपूर्वक रहे." माई तू तो कहती थी कि तुझे मांगना नही आता पर तूने तो मुझे ठग लिया, एक ही मांग में तूने सबकुछ ही ले लिया. कोई बात नहीं तू मेरी अनन्य भक्त है मैं तेरी भक्ति और बुद्धिमानी से अत्यंत प्रसन्न हूँ अतः जा तेरी इच्छा पूर्ण हो. यह कहकर गणेशजी महाराज अंतर्धान हो गए.

हे गणेशजी महाराज जैसा वृद्धा माई को दिया वैसा सभी को देना.

अनुकरणीय सन्देश -

  • भक्ति करो तो पूर्ण श्रद्धा, समर्पण तथा नियमितता से करो.
  • कोई भी बात करने से पूर्व अन्य लोगों की राय भी लो.
  • सबकी राय लेकर अपनी बुद्धि से ऐसा काम करो कि सभी को लाभ मिले.

कहानी- 3  गणेशजी का विवाह 

भगवान विष्णु के विवाह के समय में गणेशजी को बरात में ले जाने को लेकर देवी देवताओं ने यह कहकर आपत्ति की कि इसको तो बहुत खाने के लिए चाहिए तथा इसकी शारीरिक आकृति को देखकर सब लोग मजाक बनाएंगे. इस पर गणेशजी को वहीँ रखवाली करने के बहाने छोड़कर चले गए. बरात के जाने के बाद नारदजी ने गणेशजी को भड़का दिया. गणेशजी ने पूछा कि अब मैं क्या करूँ? नारदजी ने कहा कि तुम तुम्हारे चूहों को कहो कि सारी पृथ्वी को पोला करदे. इस पर चूहों ने गणेशजी के आदेशानुसार सारी पृथ्वी को पोला कर दिया. इससे भगवान् विष्णु के रथ का पहिया जमीन में धंसकर टूट गया. पहिए को ठीक करने के लिए खाती को बुलाया गया. पहिया ठीक करना प्रारम्भ करने से पूर्व उसने गणेशजी का नाम लिया. यह देखकर देवताओं ने पूछा कि तुमने गणेशजी को क्यों याद किया? खाती ने कहा, "तुम लोग कैसेदेवता हो, तुम  लोगों  को इतना भी ज्ञान नहीं कि कोई भी शुभ कार्य करने तथा किसी भी देवी-देवता की पूजा करने से पूर्व गणेशजी को पूजना या याद करना आवश्यक होता है. गणेशजी को इसीलिए विघ्नहरण-मंगलकारी कहा जाता है." यह सुनकर देवताओं ने सोचा की उनसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है. वे गणेशजी के पास पहुंचे. क्षमा याचना करते हुए उनसे बरात में चलने का आग्रह किया. पर गणेशजी पहले स्वयं का विवाह करने पर अड़ गए. तब उनका विवाह ऋद्धि-सिद्धि के साथ कर दिया गया. विवाहोपरांत गणेशजी भगवान विष्णु के साथ गए और लक्ष्मीजी से उनका विवाह बिना किसी विघ्न के सानंद संपन्न हुआ. 
हे गणेशजी महाराज जैसा भगवान के काम को सानंद संपन्न कराया वैसे ही सभी के कामों को करवाना.

अनुकरणीय सन्देश -

  • किसी भी पूजा-अर्चना तथा शुभ कार्य से पूर्व गणेशजी का  स्मरण/पूजन अवश्य करना चाहिए.
  • किसी व्यक्ति को इसलिए कि वह अच्छा नहीं दिखता है या लोग क्या कहेंगे इस आधार पर उसकी उपेक्षा नहीं करना चाहिए.



   
  

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