कहानी - 4 श्रीगणेशजी ने सेठ किशनलाल के यहाँ नौकरी की
एक बार गणेशजी ने किशनलाल नामक एक सेठजी के खेत में से गुजरते हुए गेहूं की एक बाली तोड़ ली] गणेशजी को लगा कि उन्होंने चोरी की है तथा फसल पकने से पहले उसे तोड़ा है इसलिए प्रायश्चित स्वरुप उन्होंने उस सेठ के यहां गणेसा नाम से बारह बरस के लिए नौकरी करना प्रारम्भ कर दिया। एक दिन सेठानी राख से हाथ धोने लगी तो गणेसा ने उसकी बांह मरोड़ कर राख छुड़वा दी और मिट्टी से हाथ धुलवा दिए। इस पर सेठानी ने गणेसा की शिकायत सेठजी से कर दी। सेठजी ने जब गणेसा से पूछा तो उन्होंने बताया की राख से हाथ धोने से रिद्धि&सिद्धी चली जाती है तथा मिट्टी से हाथ धोने से सब आ जाती है। सेठजी को गणेसा की बात समझ में आ गई। सेठजी ने कुछ दिनों बाद सेठानी को कुम्भ स्नान के लिए गणेसा के साथ उज्जैन भेजा। सेठानी डूबने के डर से क्षिप्रा नदी के किनारे पर नहा रही थी तो गणेसा ने उसका हाथ पकड़ कर बीच नदी में ले गया और तीन डुबकी लगा लाया । वापस घर आकर सेठानी ने सेठजी से शिकायत की कि तुम्हारे नौकर गणेसा ने सबके सामने मेरी इज्जत ले ली। सेठजी ने गणेशजी से पूछा तो उन्होंने बताया कि एक तो किनारे पर नहाने से डुबकी नहीं लगा सकते हैं तथा दूसरे किनारे पर पानी गंदा होता है जिससे पूरा पुण्य नहीं मिलता है इसलिए मैं इनको हाथ पकड़ कर अंदर ले गया। मैंने इनका केवल हाथ ही पकड़ा और कुछ नहीं किया। अब अगले जनम में इनको बहुत बड़ा राज पाट मिलेगा। सेठजी ने सोचा की मेरा नौकर गणेसा तो बहुत ही सयाना है। एक दिन घर में हवन हो रहा था] सेठजी ने हवन में लिए सेठानी को बुला कर लाने के लिए गणेशजी को भेजा। सेठानी ने काली अंगीया पहन राखी थी। गणेशजी ने वह अंगिया फाड़ कर लाल अंगिया पहनने के लिए कहां। अब तो सेठानी का पारा सातवे आसमान पर चढ़ गया। वो रूठ कर रोते हुए पलंग पर लेट गई. बहुत देर हो गई तो सेठजी स्वयं देखने पहुंचे. सेठानी ने नमक मिर्च लगाकर सारी बात बताई. सेठजी ने डाटते हुए कहा कि तू गणेसा बहुत बदमाशी करने लग गया है। गणेशजी ने बताया कि शुभ काम में काले कपड़े पहनना अच्छा नहीं है। इससे काम सफल नहीं होते हैं इसलिए मैने लाल अंगीया पहनने के लिए कहा था। सेठजी फिरसे गणेसा की बात से प्रभावित हो गए। गणेशजी की स्व घोषित सजा के के दिन पुरे होने थे। एक दिन सेठजी पूजा करने लगे तो पंडितजी ने कहा कि मैं तो गणेशजी की प्रतिमा लाना ही भूल गया हूँ। वहाँ खड़े गणेशजी ने कहा कि मुझे ही विराजमान कर दो मेरा नाम भी तो गणेसा ही है तुम्हारे सारे काम हो जाएंगे. यह सुनकर सेठजी को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने कहा अभी तक तू सेठानी से ही मसखरी करता था अब मुझसे भी करने लग गया. गणेसा बोला मैं मसखरी नहीं कर रहा हूँ, सच कह रहा हूँ। इतना कह वह असली गणेशजी के रूप में आ गया. सेठ-सेठानी ने उनकी पूजा की। पूजा के बाद गणेशजी अंतर्धान हो गए। सेठ-सेठानी को बहुत दुःख हुआ कि उन्होंने साक्षात गणेशजी से नौकर का काम कराया। रात में सपने में गणेशजी ने सेठजी को बताया कि मैंने तुम्हारे खेत से गेहूँ की एक कच्ची बाली तोड़ ली थी इसलिए उस दोष निवारण के लिए प्रायश्चित स्वरुप मैंने तेरे यहां नौकरी की। तू चिंता मत कर। तेरे घर में करोड़ों की धन दौलत हमेशा रहेगी।
हे गणेशजी महाराज जैसे किशणलाल सेठ पर कृपा की वैसे ही सब पर कृपा करना।
अनुकरणीय सन्देश -
- कोई कितना भी बड़ा व्यक्ति क्यों न हो उससे यदि कोई भूलवश भी कोई अपराध या गलत काम हो जाए तो उसका प्रायश्चित करना चाहिए।
- खेत में से कच्ची फसल को उजाड़ना भयंकर अपराध है।
- किसी पर उसकी भावना को समझे बिना कोई आरोप नहीं लगाना चाहिए।
- किसी भी व्यक्ति द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण पर सोच विचार कर भरोसा कर लीना चाहिए।
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