शनिवार, 8 मार्च 2014

puja,wrat,upwas,kathayen aur unake sandesh - Hoii Ashthamii sathme Ganeshji ki kahanii

होई अष्टमी 

होई  अष्टमी का व्रत सामान्यत: अग्रवाल जाति  की संतान वाली माताएं करतीं हैं। इसलिए इस व्रत को संतान अष्टमी भी कहते हैं।
होई  अष्टमी करवा चौथ के बाद कार्तिक मॉस के कृष्ण पक्ष में आती है। 

पूजन विधि 

  • चित्र में दिखाए अनुसार होई को दिवार/कागज़/कार्ड शीट पर बना लें।  अथवा बाज़ार में उपलब्ध छपा हुआ पाठा ले आएं। यदि बार बार यह नहीं मिल सके तो पाठे  को कांच में फ्रेम करा कर रख लें। या चांदी की होई अगर उपलब्ध हो सके तो उसे भी स्थाई रूप से लेकर रख लें। सांयकाल में पूजा करें।  व्रत रखें।
  • स्नान] प्राणायाम एवं ध्यान करें। 
  • गणपति की स्थापना करें 
  • जैसे अन्य पूजा की जाती है वैसे ही होई की पूजा करें।पूजन विधि 8  फ़रवरी  2014 के दूसरे ब्लॉग में दी गई है। पूजा में आँवले अवश्य चढ़ाएं।
  • होई  अष्टमी की कथा कहें।
  • सासुजी] ननंद] बेटी का बायना निकाले और धोक लगाकर उनको देवें या घर भिजवाएं।
  • फिर होई  अष्टमी व्रत खोलें। ठंडा खाएं। 
 होई अष्टमी  की कथा 
  एक साहूकार के सात बेटे बहु और एक बेटी थी। एक दिन सातों बहुएँ और ननंद मिटटी लेने गईं। ननंद के हाथ से मिटटी खोदते समय एक सेई का बच्चा मर गया। सेई ने ननंद से कहा कि मैं तेरी कोख बांधूंगी। यह सुनकर ननंद घबरा गई। उसने भाभियों से कहा कि आपमें से कोई अपनी कोख बंधवा लो। बड़ी छ बहुएं तो इसके लिए राजी नहीं हुईं। छोटी बहु ने सोचा कि सासुजी नाराज होंगी सो उसने हाँ भर दी।छोटी बहु के सात बच्चे हुए पर वे होते से ही सातवे दिन मर गए। उसने पंडित से पूछा। उसने कहा कि सुरही गाय से पूछो वो सेई कि सहेली है। वो रोजाना सुबह जल्दी उठकर गाय के यहाँ जाती और उसकी सेवा साफ़ सफाई आदि करके आ जाती । गौ माता ने सोचा कि आजकल कौन मेरा काम कर रही है। सब बहुएं तो मेरा काम नहीं करने के लिए हमेशा लड़ती रहती हैं। एक दिन उसने सुबह जल्दी उठकर निगाह रखी।उसने देखा की सबसे छोटी बहु काम कर रही थी। उसने उससे पूछा कि तुझे क्या चाहिए। बहु ने कहा कि मुझे वचन दे दो। गाय माता ने वचन दे दिया। तब उसने सारी बात बताते हुए कहा कि सेई तुम्हारी सहेली है उससे मेरी कोख खुलवा दो। गाय माता उसे सात समुन्दर पार अपनी सहेली सेई के पास ले जाने लगी। कुछ दूर चलने के बाद रास्ते में एक पेड़ के नीचे ठंडक में सुस्ताने लगे। पेड़ पर एक गरुड़ पक्षी का घोंसला था।उसके बच्चों को खाने के लिए एक सांप पेड़ पर चढ़ने लगा। बहु ने यह देखकर सांप को मारकर ढाल के नीचे ढँक लिया।गरुड़ पंखनी आई तो आस पास खून देख यह सोचकर कि बहु ने उसके बच्चों को मार दिया है गरुड़ पंखनी ने बहु के चोंच मारी। बहु ने मरा हुआ सांप दिखाते हुए कहा मैंने तो सांप से तेरे बच्चों की जान बचाई है। इस पर प्रसन्न होकर गरुड़ पंखनी ने बहु से वरदान माँगने को कहा। बहु ने कहा मुझे सात समुन्दर पार सेई माता के पास पहुंचा दो। गरुड़ पंखनी ने गौ माता और बहु दोनों को अपनी पीठ पर बिठा कर सेई माता के पास पहुंचा दिया।सेई माता गौ माता से बोली बहिन बहुत दिनों बाद आई हो। क्या बात है।बैठो बात करते करते मेरे सर में से जूं निकाल दो। गौ माता ने कहा मेरे साथ जो आई है वह जुएं निकाल देगी। बहु ने सारी जुएं निकाल दी। उससे उसे आराम मिला।  सेई माता ने बहु को आशीर्वाद देते हुए कहा कि जा तेरे सात बेटे बहु होवे। बहु ने कहा मेरे तो एक भी नहीं है। सेई  माता ने पूछा कि क्यों नहीं है तो उसने कहा सारी  बात बताती हूँ पहले मुझे वचन दो।सेई माता ने वचन दिया बोली वचन तोडूं तो धोबी के कुण्ड पर कंकर बनू।वचन देने पर बहु ने सारी  बात बता दी। सब सुनकर सेई माता बोली तूने तो मुझे ठग लिया चल जा तेरी कोख खोल देती हूँ।  घर जा तुझे सात बेटे बहु मिलेंगे।घर जाकर सात होई  मांडना। हलवे की सात कढ़ाई बनाना  सात उजवण करना। जब बहु गौ माता के साथ घर पहुंची तो वहां सात बेटे बहु मिले। तब उसने सबसे सात होई मँड़वाई। फिर पूजा की। उधर उसकी छ जेठानियों ने कहा कि जल्दी से पूजा कर लेते हैं नहीं तो छुटकी रोने लग जायेगी तो अपसगुन हो जाएगा। पूजा कर उन्होंने अपने बच्चों को कहा  कि जाकर देखकर आओ आज रोने की आवाज क्यों नहीं आ रही है। बच्चों ने आकर बताया कि वहां तो बहुत ठाठ हो रहे हैं।  सात उजवण हो रहे हैं। यह सुनकर छहों दौड़ी दौड़ी छुटकी के घर पहुंची। छुटकी ने सब कुछ बता दिया। सेई माता ने मेरी कोख खोल दी। मेरे सातों बच्चे मुझे लौटा दिए।                
यह सुनकर सब बोली हे होई माता जैसे साहूकार की कोख खोली वैसे ही सबकी खोलना। 
  
अनुकरणीय सन्देश  %&
1-    हर भूल का प्रायश्चित किया जा सकता है। 
2-  कोई भी जीव हो उसकी सेवा और सहायता करने  का फल सदैव अच्छा मिलता है।          

गणेश जी की कथा 
  एक हीरा नामक ब्राह्मण था। पर उसमें बहुतसी बुराइयां थी। वह उन बुराइयों को छोड़ना चाहता था। एक दिन सपने में उसने अपनी समस्या गणेश जी को बताई। गणेश जी ने कहा कि आज से 21 वे दिन तू मर जाएगा क्या करेगा बुराइयां छोड़कर ] जा मस्त रह। सुबह उठने पर उसे गणेश जी की कही बात याद आ गई। अब उसे हर समय मौत का भय सताने लगा। बीसवे दिन गणेश जी वापस उसके सपने में आये और पूछा कल तो तुम्हारे जीवन का आखिरी दिन है। अच्छा चल हीरा एक बात बता तूने गत बीस दिनों में कितने बुरे काम किये \ हीरा बोला हे देव मैंने एक भी बुरा काम नहीं किया। उसका उत्तर सुन गणेश जी बोले&देखो हीरा तुमने मौत के  भय से समस्त बुरे काम छोड़ दिए। इसी प्रकार यदि मनुष्य अपने मन में यह याद रखे कि एक दिन मरने के बाद भगवान के पास जाना पड़ेगा तो वह कभी बुरे काम नहीं करेगा। वैसे तुम अभी मरने वाले नही हो क्योंकि तुमने सारे बुरे काम छोड़ दिए हैं। जाओ तुम आगे का अपना सम्पूर्ण जीवन अच्छे से जिओगे। यह कह गणेश जी अन्तर्ध्यान हो गए। अचानक हीरा की आँख खुल गयी। उसका इक्कीसवाँ दिन आराम से निकला। वह जीवित रहा। उसे गणेश जी पर पूर्ण आस्था हो गयी।  
हे गणेश जी जैसे हीरा की बुरी आदतों को छुड़वाया वैसे ही हमें भी बुरी आदतों से मुक्ति दिलाना। 
अनुकरणीय सन्देश 
1. मृत्यु का भय मानव को बुराइयों से दूर रखता है।
 2 यह याद रखना चाहिए कि एक दिन ईश्वर को जवाब देना है।   

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