मंगलवार, 10 जून 2014

puja, wrat, upwas, kathaey aur unake sandesh - Maahi Chauth(Til Chauth)

पूजा, व्रत, उपवास, कथा और उनके सन्देश - माही चौथ (तिल चौथ)


पूजन विधि :-  जैसे प्रत्येक चौथ की पूजा होती है वैसे ही करना है.

माही चौथ की कथा :-

एक साहूकार-साहुकारनी थे . उनके संतान नहीं हो रही थी. एक दिन साहुकारनी ने पड़ोसन को माही चौथ का व्रत करते देखा. पड़ोसन से व्रत का माहात्म्य पूछकर उसने कहा "यदि मेरे  गर्भ ठहर गया तो मैं चौथ का व्रत रखूंगी और   सवा सेर का तिलकुट चढ़ा दूंगी". पुत्र हो गया तो बोली कि बेटे का विवाह हो जाएगा तब व्रत भी करुँगी और तिलकुट भी चढ़ा दूंगी. चौथमाता ने सोचा कि यह महिला तो बड़ी चालाक है, अपनी बात को टालते जा रही है, मुझे ही मुरख बना रही है.इसको सीख देना जरूरी है अन्यथा यह लोगों को ऐसे ही मुर्ख बनाती रहेगी. समय बिता. विवाह का दिन भी आ गया. फैरे होने लगे. तीसरे फैरे के बाद चौथ माता ने अपने प्रभाव से दुल्हा बने बेटे को उठाकर एक बड़े पीपल के पेड़ पर बिठा दिया. कई दिनों तक दुल्हे की खोज होती रही पर वह नहीं मिला. जब गणगौर आई तो युवतियां पीपल के पेड़ के नीचे दूब लेने को जाती. पेड़ पर बैठा दुल्हा एक युवती से हमेशा एक ही बात बोलता,  " आ मेरी अधब्याहेडी(अर्धविवाहित)". यह बात बार बार सुनकर वह युवती डर के मारे दुबली होने लग गई. एक दिन उसकी माँ बोली, " मैं तुझको इतना खाने को देती हूँ , फिर भी तू क्यों सूखी जा रही है. तब उसने माँ को बताया कि दुल्हे की पोशाक में पेड़ पर बैठा एक युवक मुझसे रोज कहता है कि आ मेरी अधब्याहेडी. यह सुनकर उसकी माँ ने वहां जाकर देखा औए बोली,  'अरे बावली वो तो तेरा दुल्हा ही है.  ' माँ ने उससे पूछा , " जमाईसा, आप वहां क्या कर रहे हो?" दुल्हा बोला, " ये सब मेरी माँ की करनी का फल मैं भुगत रहा हूँ, मैं यहाँ चौथ माता के रहन पड़ा हुआ हूँ. मेरी माँ बहुत चालाक है, उसने चौथ माता का व्रत करने का वादा किया था पर उसे पूरा नहीं किया. सबक सिखाने के लिए माता मुझे उठा लाइ और यहाँ लटका दिया." युवती की माँ युवक की माँ के पास गई और सारी बात बताई. साहुकारनी बोली,  " है माता, मुझे माफ़ करदो, मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई, मैं तेरा व्रत भी रखूंगी और ढाई मन का तिलकुट करुँगी. मुझे मेरा लाल लौटा दे." चौथ माता को तो सबक सिखाना था, इसलिए उसने दुल्हे को लौटा दिया. फैरे पड़े, धूमधाम से विवाह हो गया. इस बार साहुकारानी ने गलती नहीं की और पूरी श्रद्धा के साथ व्रत किया और तिलकुट चढ़ाया.
है चौथ माता जैसे साहुकारनी  को बेटा दिया और  बेटे-बहु को मिलाया उसी प्रकार सबको बेटे-बहु दे.
अनुकरणीय सन्देश : -
अपने वचनों पर कायम रहें.
चालाकी न करें.
गणेशजी की कथा :-
एक जेठानी-देवरानी थी. देवरानी धनवान और जेठानी बहुत गरीब थी. जेठानी, देवरानी के घर पर नौकरानी के जैसे काम करती थी. वहां पर वह जिस कपडे से आटा छानती थी उसे घर ले जाकर पानी में धोती थी और वह पानी अपने पति को पीने के लिए देती थी. एक दिन देवरानी के बच्चों ने अपनी ताईजी को यह करते देखा लिया. उन्होंने जाकर अपनी माँ से बता दिया. यह जानकर देवरानी को बहुत गुस्सा आया. अगले दिन जेठानी आई तो देवरानी उससे बोली , " तुम आटा छानने का कपड़ा यहीं छोड़कर तथा हाथ धोकर घर जाओगी." बेचारी जेठानी ने ऐसे ही किया. घर जाने पर उसके पति ने आटे का घोल माँगा. उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी. उसके निखट्टू पति ने गुस्से में आकर लकड़ी से जोर से  मारा. जेठानी गणेशजी की भक्त थी. वह गणेशजी को याद करती हुई सो गई. गणेशजी उसके दुःख को जानते थे. उन्होंने सपने में  आकर पूछा तो उसने सारी बात बतादी. गणेशजी ने कहा कि मैं कई जगह तिलकुट खाकर आ रहा हूँ इसलिए निपटने की इच्छा हो रही है कहाँ जाऊं. जेठानी ने कहा," तूने मुझे कुछ तो दिया ही नहीं है, घर में रखा ही क्या है, सारा घर आँगन खाली पड़ा है तेरी मर्जी हो वहीँ बैठ जा". गणेशजी ने जहाँ जहाँ  मरजी पड़ी वहां वहां अपना काम कर दिया. फिर पूछा, " तेरे घर में तो पानी भी नहीं हैं अब पोंछनी भी तो है".  जेठानी ने तंग होकर कहा, " मेरे सर के बालों से पोंछ ले." गणेशजी ने ऐसे ही किया. सुबह जब जेठानी की नींद खुली तो  देखा कि सारे घर में सोना -चांदी, हीरे जवाहरात बिखरे पड़े हैं. हीरे जवाहरात समेटने में देर हो गई. देवरानी ने देखने के लिए बच्चों को भेजा. बच्चों ने लौटकर सारी बात बताई. देवरानी दौड़ी-दौड़ी जेठानी के घर पहुंची. इतनी सारी दौलत देखकर देवरानी की आँखे फटी की फटी रह गई. उसने पूछा तो जेठानी से सारी बात सच सच बता दी. वो दौड़ी दौड़ी घर पहुंची और अपने पति से पटिए से मारने के लिए कहा. पति ने कहा अरे मुर्ख पैसे की भूख में क्यों मार खाना चाहती है? वह नहीं मानी तो पति को गुस्सा आगया और उसने अच्छे से ठुकाई करदी. उसने सारा घर खाली कर दिया और गणेशजी का नाम लेकर सो गई. सपने में गणेशजी आये. सारी बाते उसी तरीके से हुई. सुबह जब देवरानी उठी तो सारे घर में गन्दगी का साम्राज्य था. भयंकर दुर्गन्ध से घर भरा हुआ था. बालों में भी गन्दगी लिपटी हुई थी. उसने गणेशजी को याद किया. गणेशजी प्रगट हुए. देवरानी बोली तूने मुझे धोखा दिया है. गणेशजी ने कहा तूने तो धनदौलत के लालच में झुंट की मार खाई, जबकि उसने धर्म की रक्षा में मार खाई. उसने कहा आप अपनी माया समेट लो. गणेशजी ने कहा की तू अपनी जायदाद का आधा भाग जेठानी को दे दे तथा उससे नौकरानी की तरह काम लेने के लिए माफ़ी मांग ले तो मैं अपनी माया समेट लूँगा. देवरानी ने  वचन दिया तो गणेशजी ने अपनी माया को समेट लिया.
हे गणेशजी महाराज जैसा तुमने जेठानी को दिया वैसा ही सबको देना और देवरानी जैसा किसी को मत देना.

अनुकरणीय सन्देश :-


  • अपने से बड़े सम्बन्धी को नौकर की तरह नहीं रखें.
  • दुसरे की नक़ल नहीं करे.
  • लालच नहीं करे.
  • धर्म और सच्चे मार्ग पर चलने वाले को अच्छा फल अवश्य मिलता है भले ही देर हो जाए.


  

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