Puja, wrat, upwas, kathayen aur unake sandesh - waibhaw lakshmi wrat katha
पूजा, व्रत, उपवास, कथाएं और उनके सन्देश - वैभव लक्ष्मी व्रत कथा
पूजन विधि:-
शीला को भगवान् पर अगाध श्रद्धा थी. वो अपने ईश्वर के भरोसे सब कुछ सहन करती रही. वह प्रभु भक्ति में और अधिक समय देने लगी. एक दिन किसी के द्वारा घर का दरवाजा खटखटाए जाने पर उसने खोला तो देखा कि एक अलौकिक आभा युक्त वृद्धा खडी हुई थी. उसने चरणस्पर्श करते हुए उन्हें आमंत्रित कर दरी पर बैठाया. वृद्धा ने कहा , " बेटी शीला , ऐसा लगता है कि तुमने मुझे पहचाना नहीं." शीला ने कहा, " माताश्री, ऐसा लगता है जैसे कि मैं आपको जानती तो हूँ पर क्षमा करें पहचान नहीं पा रही हूँ."
"अरे पगली, अपन प्रति शुक्रवार को महालक्ष्मी के मंदिर में होने वाले भजन-कीर्तन में मिलते तो हैं." वृद्धा ने उसके सर पर हाथ फिराते हुए स्नेहभरी मुस्कराहट के साथ कहा. परन्तु फिर भी शीला को कुछ याद नहीं आया.
शीला के चहरे के भावों को देखते हुए वृद्धा बोली," बहुत दिनों से तू दिखाई नही दी तो मैं तेरे हाल चाल पूछने चली आई."
सात्वना भरे शब्दों से शीला का धीरज टूट गया और उसने सारी आपबीती सुनादी. सब सुनाने के बाद वृद्धा बोली, " इस या उस जन्म के फल बहुत भुगत लिए अब तेरे अच्छे दिन आने वाले हैं. तू वैभव लक्ष्मी का व्रत कर." उन्होंने व्रत की पूरी विधि बतादी.
सब सुनकर शीला ने आँखे बंद कर संकल्प लिया कि वह पुरे 21 शुक्रवार तक व्रत करेगी. जब आँखें खोली तो सामने वृद्धा नहीं दिखाई दी. वह वृद्धा और कोई नही साक्षात महालक्ष्मी थी इसलिए वे अंतर्ध्यान हो गई. अगले दिन शुक्रवार था. उसी दिन से शीला ने व्रत करना प्रारम्भ कर दिए. पहले ही दिन जब पुरे विधिविधान से व्रत करने के बाद उसने प्रसाद अपने पति को दिया तो उसके पति के व्यवहार में परिवर्तन दिखाई दिया. उसके पति ने उस दिन उस पर हाथ नहीं उठाया. 21 वे शुक्रवार को उसने बताये गए तरीके से उजवन किया. उसने महालक्ष्मी की तस्वीर को प्रणाम कर मन ही मन प्रार्थना की कि हे माँ मैंने इस व्रत का संकल्प लिया था जो आज पूरा हुआ. हे माँ मेरी मनोकामना पूरी करना. व्रत की अवधी के दौरान शीला के पति की आदतों में भी बदलाव आता गया था. परिणामस्वरूप उसका काम धंधा अच्छा चल निकला और सारा वैभव पुन; लौट आया.
हे लक्ष्मी माता जैसे तूने शीला को वैभव दिया वैसे सभी को देना.
अनुकरणीय सन्देश :-
गणेशजी की कथा
एक गाँव में तीन मित्र रहते थे. वे गणेशजी के पक्के भक्त थे. एक दिन गणेशजी ने यह जानने के लिए कि कौन श्रेष्ठ भक्त है उनकी परीक्षा लेने का निर्णय किया. उन्होंने एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धर कर उन तीनों से भेंट की. उन्होंने तीनों को एक एक थाली देकर कहा कि यह हर व्यक्ति की भूख शांत करने की क्षमता रखती है.
तुम भूखों की भूख मिटाने के लिए इसका उपयोग कर सकते हो. यह कह कर वे चले गए.
दो मित्र दो अलग अलग स्थानों पर जाकर बैठ गए. जो भी उधर से निकला उसको उन्होंने भरपेट भोजन कराया. तीसरा मित्र वह थाली लेकर जगह जगह घुमाता रहा और जो भी भूखा मिला उसको भोजन कराया. दूसरे दिन वृद्ध रूपी गणेशजी पुनः उन तीनों मित्रों से मिले और उनसे थाली का उपयोग कैसे किया ये पूछा. तीनों की बात सुनने के बाद गणेशजी अपने असली रूप में आ गए और बोले कि तीसरा व्यक्ति ही मेरा सच्चा भक्त है अतः इसे मैं वर माँगने के लिए कहता हूँ. तीसरे मित्र ने कहा, " हे भगवन मुझे तो कुछ भी नहीं चाहिए
मैं तो बस इतना ही चाहता हूँ कि मेरे द्वार से कोई भी भूखा न जाए. गणेशजी ने कहा जा दिया. तीसरा व्यक्ति जीवन भर लोगों की मदद करता रहा.
हे गणेशजी महाराज तीसरे मित्र जैसा ही मन और क्षमता सब को देना ताकि कोई भी भूखा न सोए.
अनुकरणीय सन्देश :-
सच्ची सेवा का फल सदैव अच्छा होता है.
पूजा, व्रत, उपवास, कथाएं और उनके सन्देश - वैभव लक्ष्मी व्रत कथा
पूजन विधि:-
- यह व्रत शुक्रवार को किया जाता है.
- व्रत प्रारम्भ करने से पहले ही 11 या 21 व्रत करने का संकल्प लिया जाता है.
- व्रत लगातार करना श्रेष्ठ होता है लेकिन किसी कारण से व्यवधान आने पर संकल्पित संख्या के व्रत अवश्य करने चाहियें.
- पूजा करने से पूर्व स्नान, प्राणायाम एवं ध्यान अवश्य करें.
- गणपति की स्थापना एवं पूजा करें.
- जैसे अन्य पूजा की जाती है वैसे ही चावल पर महालक्ष्मी के चित्र और श्रीयंत्र(यदि हो तो ) विराजित कर पूजा करें.
- पूजा के पश्चात कथा कहें.
- अंतिम शुक्रवार को उजवन करें. 11 कन्याओं को भोजन कराएं. भोजन में चावल की खीर अवश्य हो.
वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा
एक बड़ा नगर था. उसमें शीला अपने पति के साथ रहती थी. दोनों ही संतोषी, विवेकी, सुशील, ईमानदार और धार्मिक प्रवृति के थे. ये परनिंदा में कभी भी सम्मिलित नहीं होते थे. उनकी आदर्श गृहस्थी की सभी प्रशंसा करते थे. परन्तु अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के फलस्वरूप शीला का पति गलत संगत में पड़ गया और नशा, जुंवा आदि करने से उसकी हालत भिखारियों जैसी हो गई. वह शीला के साथ भी दुर्व्यवहार करने लग गया.शीला को भगवान् पर अगाध श्रद्धा थी. वो अपने ईश्वर के भरोसे सब कुछ सहन करती रही. वह प्रभु भक्ति में और अधिक समय देने लगी. एक दिन किसी के द्वारा घर का दरवाजा खटखटाए जाने पर उसने खोला तो देखा कि एक अलौकिक आभा युक्त वृद्धा खडी हुई थी. उसने चरणस्पर्श करते हुए उन्हें आमंत्रित कर दरी पर बैठाया. वृद्धा ने कहा , " बेटी शीला , ऐसा लगता है कि तुमने मुझे पहचाना नहीं." शीला ने कहा, " माताश्री, ऐसा लगता है जैसे कि मैं आपको जानती तो हूँ पर क्षमा करें पहचान नहीं पा रही हूँ."
"अरे पगली, अपन प्रति शुक्रवार को महालक्ष्मी के मंदिर में होने वाले भजन-कीर्तन में मिलते तो हैं." वृद्धा ने उसके सर पर हाथ फिराते हुए स्नेहभरी मुस्कराहट के साथ कहा. परन्तु फिर भी शीला को कुछ याद नहीं आया.
शीला के चहरे के भावों को देखते हुए वृद्धा बोली," बहुत दिनों से तू दिखाई नही दी तो मैं तेरे हाल चाल पूछने चली आई."
सात्वना भरे शब्दों से शीला का धीरज टूट गया और उसने सारी आपबीती सुनादी. सब सुनाने के बाद वृद्धा बोली, " इस या उस जन्म के फल बहुत भुगत लिए अब तेरे अच्छे दिन आने वाले हैं. तू वैभव लक्ष्मी का व्रत कर." उन्होंने व्रत की पूरी विधि बतादी.
सब सुनकर शीला ने आँखे बंद कर संकल्प लिया कि वह पुरे 21 शुक्रवार तक व्रत करेगी. जब आँखें खोली तो सामने वृद्धा नहीं दिखाई दी. वह वृद्धा और कोई नही साक्षात महालक्ष्मी थी इसलिए वे अंतर्ध्यान हो गई. अगले दिन शुक्रवार था. उसी दिन से शीला ने व्रत करना प्रारम्भ कर दिए. पहले ही दिन जब पुरे विधिविधान से व्रत करने के बाद उसने प्रसाद अपने पति को दिया तो उसके पति के व्यवहार में परिवर्तन दिखाई दिया. उसके पति ने उस दिन उस पर हाथ नहीं उठाया. 21 वे शुक्रवार को उसने बताये गए तरीके से उजवन किया. उसने महालक्ष्मी की तस्वीर को प्रणाम कर मन ही मन प्रार्थना की कि हे माँ मैंने इस व्रत का संकल्प लिया था जो आज पूरा हुआ. हे माँ मेरी मनोकामना पूरी करना. व्रत की अवधी के दौरान शीला के पति की आदतों में भी बदलाव आता गया था. परिणामस्वरूप उसका काम धंधा अच्छा चल निकला और सारा वैभव पुन; लौट आया.
हे लक्ष्मी माता जैसे तूने शीला को वैभव दिया वैसे सभी को देना.
अनुकरणीय सन्देश :-
- बुरे कर्मों का फल अच्छा नहीं होता है.
- दृढ संकल्प के साथ किए गए कार्य में अवश्य ही सफलता मिलती है.
- प्रयास करने से अच्छे दिन अवश्य आते हैं.
गणेशजी की कथा
एक गाँव में तीन मित्र रहते थे. वे गणेशजी के पक्के भक्त थे. एक दिन गणेशजी ने यह जानने के लिए कि कौन श्रेष्ठ भक्त है उनकी परीक्षा लेने का निर्णय किया. उन्होंने एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धर कर उन तीनों से भेंट की. उन्होंने तीनों को एक एक थाली देकर कहा कि यह हर व्यक्ति की भूख शांत करने की क्षमता रखती है.
तुम भूखों की भूख मिटाने के लिए इसका उपयोग कर सकते हो. यह कह कर वे चले गए.
दो मित्र दो अलग अलग स्थानों पर जाकर बैठ गए. जो भी उधर से निकला उसको उन्होंने भरपेट भोजन कराया. तीसरा मित्र वह थाली लेकर जगह जगह घुमाता रहा और जो भी भूखा मिला उसको भोजन कराया. दूसरे दिन वृद्ध रूपी गणेशजी पुनः उन तीनों मित्रों से मिले और उनसे थाली का उपयोग कैसे किया ये पूछा. तीनों की बात सुनने के बाद गणेशजी अपने असली रूप में आ गए और बोले कि तीसरा व्यक्ति ही मेरा सच्चा भक्त है अतः इसे मैं वर माँगने के लिए कहता हूँ. तीसरे मित्र ने कहा, " हे भगवन मुझे तो कुछ भी नहीं चाहिए
मैं तो बस इतना ही चाहता हूँ कि मेरे द्वार से कोई भी भूखा न जाए. गणेशजी ने कहा जा दिया. तीसरा व्यक्ति जीवन भर लोगों की मदद करता रहा.
हे गणेशजी महाराज तीसरे मित्र जैसा ही मन और क्षमता सब को देना ताकि कोई भी भूखा न सोए.
अनुकरणीय सन्देश :-
सच्ची सेवा का फल सदैव अच्छा होता है.
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