भैया दूज (यम द्वितीया)/ भाई बीज
- भैया दूज दिवस दीपावली के एक दिन बाद आता है।
- पौराणिक कथा में यम और यमुना के होने से इसे यम द्वितीया भी कहा जाता है।
- सामान्यत:भैया दूज दिन कोई व्रत नहीं किया जाता है।
- भैया दूज के दिन भाई के द्वारा बहिन के यहां भोजन करने तथा बहिन को उपहार देने का प्रावधान है।
- कुछ स्थानों पर इसमें पूजन करने और कथा का भी प्रचलन है।
पूजन विधि
- चित्र में दिखाए अनुसार भैया दूज को दिवार/कागज़/कार्ड शीट पर बना लें।
- प्रातः काल में पूजा करें।
- स्नान] प्राणायाम एवं ध्यान करें।
- गणपति की स्थापना करें।
- जैसे अन्य पूजा की जाती है वैसे ही पूजा करें।
- पूजन विधि 8 फ़रवरी 2014 के दूसरे ब्लॉग में दी गई है।
- हलवे का भोग लगाएं।
- कथा कहें।
- भाइयों को भोजन पर आमंत्रित कर उन्हें भोजन करवाएं।
- भाइयों को तिलक लगाकर श्रीफल भेंट करें।
- इस दिन यमुना में स्नान का भी महत्व है।
- कथा - 1 यम द्वितीया या भैया दूज या भाई बीज की पौराणिक कथा
सूर्य देवता की पत्नी का नाम संज्ञा है। यम और यमुना उनके पुत्र और पुत्री हैं। यमुना अपने भाई यम से बहुत स्नेह करती थी। वे उनको अभिन्न मित्रों सहित सदैव अपने यहाँ आकर भोजन ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया करती थीं। परन्तु व्यस्तता के चलते तथा इस विचार से कि मैं तो मृत्यु का देवता हूँ किसी के यहां कैसे जा सकता हूँ यमराज टालते रहते थे। एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना ने अपने भाई को वचनबद्ध कर आमंत्रित करने में सफलता प्राप्त कर ही ली।
यमराज ने विचार किया कि समस्त जीव मुझसे भयभीत रहते हैं इसलिए मुझसे दूर रहने में ही अपना भला समझते हैं । इसी भय से मुझे कोई आमंत्रित नहीं करता है। अब यदि मेरी बहिना स्नेहवश मुझे आमंत्रित कर रही है तो मुझे अवश्य जाना चाहिए। बहिन के यहाँ जाना मेरा नैतिक कर्तव्य है। यमराज अचानक बहिन के यहाँ पहुँच गए। यम को आया देख यमुना की प्रसन्नता का पारावार न रहा। उसने यम को स्नान कराया। पूजा की, टीका निकाल कर आरती की एवं श्रीफल भेंट किया । स्वादिष्ट पकवानों युक्त भोजन कराया। आदर सत्कार से अभिभूत होकर यमुना से वर मांगने का अनुरोध किया। यमुना ने कहा - हे भ्राता, आप प्रतिवर्ष पधारें और आज के दिन सभी भाई अपनी बहिन के यहाँ जाए और भोजन करे। मेरी तरह जो भाइयों का आदर सत्कार करे तथा टीका काढ़े उसे कभी आपका भय नहीं रहे। यम ने तथास्तु कहा तथा यमुना को वस्त्र और आभूषण प्रदान किए तथा यमलोक के लिए प्रस्थान कर गए। इसी दिन को भैया दूज के रूप में मनाया जाता है। इस दिन जो भाई यमुना स्नान कर बहिन का आतिथ्य स्वीकार करे एवं उस दिन उसे उपहार दे उसे मृत्यु का भय नहीं रहता।
हे दूज माता सब भाइयों एवं बहिनो को मृत्यु के भय से मुक्त करना।
- कथा - 2 भैया दूज या भाई बीज की लौकिक कथा
सात बहनों के बीच एक इकलोता छोटा भाई था । सब उसको बहुत स्नेह करते थे। छः बहिनों का विवाह तो बहुत दूर दूर हुआ परन्तु सबसे छोटी का पास के गाँव में हुआ। भाई की सगाई हो गई तथा विवाह की तिथि पास में आ गई। माँ ने कहा बेटा जाकर अपनी बहिनों को ले आ। बेटा बोला माँ मैं अकेला इतनी दूर कहाँ कहाँ जाऊँगा। सबसे पास वाली बहिन को ले आता हूँ। माँ को भी बात समझ में आ गई। भाई बहिन के घर पहुंचा। संयोगवश उस दिन भैया दूज थी। वहां उसने देखा उसकी बहिन द्वार पर भाई की तस्वीर बनाकर पूजा कर रही थी। उसने भाई को आते देख लिया। पर वह पूजा करती रही। भाई चुपचाप देखता रहा। पूजा करने के बाद उसने पूछा भैया तुम कौन हो? मैंने पहचाना नहीं। भाई ने अपना परिचय दिया। भाई को साक्षात सामने देख वह बहुत प्रसन्न हुई उसकी नैन भर आए, आवाज भर्रा गई। । उसने कहा भैया मुझे क्षमा करना। मेरे विवाह के समय तुम बहुत छोटे थे इसलिए पहचाना नहीं। दोनों बात करते हुए घर के अंदर गए। सुख दुःख की बातें की। उसने भाई के टीका लगाया, आरती उतारी, श्रीफल भेंट किया और विभिन्न पकवानों वाला स्वादिष्ट भोजन कराया। भाई ने अपने विवाह की बात बताई। उसने कहा मैं तुम्हे लेने आया हूँ। बहिन ने कहा तुम जाओ विवाह का घर है कई काम होंगे। मैं परसों आ जाउंगी। बहिन ने रास्ते के कलेवे के लिए लडडू बना कर दिए। भाई लडडू की पोटली लेकर चल पड़ा। मार्ग में सुस्ताने के लिए उसने एक बरगद के पेड़ की छायाँ में पोटली बाँध कर लटका दी। बहिन ने भाई के जाने के बाद देखा कि बचे हुए लडडू को खाने से एक चूहा मर गया। उसने दाल पीसने की चक्की को देखा तो उसमें उसे सांप की चमड़ी दिखाई दी। वह यह देख कर डर गई। लडडुओं में सांप का जहर आ गया था। वह भाई को सतर्क करने के लिए दौड़ पड़ी। रास्ते में भाई उसे विश्राम करता मिला। वह समझी उसका भाई मर गया है। तभी उसकी निगाह पेड़ की डाल से लटकी पोटली पर गयी। उसको कुछ शान्ति मिली। इतने में भाई की निद्रा भी टूट गई। उसने भाई को सारी बात बताते है उससे लडडू ले कर जमीन में गाड़ दिए। बहिन ने अपनी सतर्कता से अपने भाई की जान बचा ली।
हे भाई दूज माता हे यम देवता जैसे बहिन की सतर्कता ने भाई की रक्षा की वैसे ही सब बहिनों के भाई की रक्षा करना।
अनुकरणीय सन्देश
- भाई बहिन के पारस्परिक प्रघाढ़ सम्बन्ध भयमुक्त जीवन का आधार है।
- सतर्कता सुरक्षा के लिए आवश्यक है।
गणपति की कहानी
किसना बहुत शरारती लड़का था। उसकी माँ उसकी शरारतों से परेशान रहती थी। एक बार उसने गणेश चतुर्थी पर गणेशजी की स्थापना करते हुए प्रार्थना की कि हे गणपति महाराज यदि आपने मेरे लड़के को नहीं सुधारा तो मैं आपका विसर्जन नहीं करुँगी। आप यहीं मेरे घर में पड़े रहोगे। गणपति यह सोचकर परेशान हो गए कि मैं क्या करूँ ? ये मेरी अनन्य भक्त है। मुझे कुछ तो करना चाहिए। उन्होंने एक गाय के बछड़े का रूप धरा और लड़के के सामने उपस्थित हो गए। गणेशजी की ईच्छा अनुसार बछड़े को देख कर लड़के को शरारत सूझी। उसने बछड़े की पूंछ पकड़ कर जोर से मरोड़ दी। बछड़ा डर कर अंधाधुंध भागा। बछड़ा रूपी गणेशजी दौड़ते हुए जानबूझकर एक वृक्ष से टकरा गए। उससे सर में चोट लगी और वो कराहने लगे। यह देख लड़के का मन द्रवित हो गया। उसने उसको बचाने का प्रयास किया पर बचा नहीं सका। वह उसे मारा समझ चुपचाप घर चला गया। रात में उसने सोने का प्रयास किया पर नींद आई । चौथे प्रहर उसे झपकी लगी। सपने में उसने देखा की गणेशजी उससे कह रहे हैं कि यदि तू शरारत करना छोड़ दे तो मैं बछड़े को जीवित कर सकता हूँ। किसना से गणेशजी से क्षमा मांगते हुए फिर कभी ऐसी शरारत नहीं करने की सौगंध खाई। गणेशजी ने कहा तथास्तु। जा बछड़ा जीवित हो जाएगा। यह कह वे अंतर्ध्यान हो गए। किसना की नींद खुल गई। उसे गणेशजी की बात याद आई। वह दौड़ता हुआ उस वृक्ष के नीचे गया। वहां उसने बछड़े को उछल कूद करते देखा। उसने उसे सहलाया। वापस घर पहुँचा। किसना की माँ ने किसना के व्यवहार में बहुत परिवर्तन देखा। उसने देखा कि वह गंभीरता से पढ़ाई करता है और शरारते छोड़ दी हैं। उसने किसना से पूछा तो उसने सारी बात सच सच बता दी। वह समझ गई यह सब गणेशजी की कृपा से हुआ है। उसने गणेशजी की प्रतिमा का धूमधाम से विसर्जन किया। किसना ने भी पूरी श्रद्धा के साथ उसमे भाग लिया।
हे गणपति जैसे किसना की शरारतों को कम कर उसकी माँ को राहत पहुंचाई वैसे ही सभी माँओ को राहत पहुँचाना।
अनुकरणीय सन्देश
- कभी कभी जीवन में कोई ऐसी घटना घटित हो जाती है जो आपका जीवन ही बदल देती है
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