सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

puja,wrat,upwas,kathayen aur unake sandesh - aamwalaa nawami saath me ganpatii ki kahanii - font used KrutiDev 010



 आंवला नवमी   

1- स्नान] प्राणायाम एवं ध्यान करें। 
2- गणपति की स्थापना करें 
3- जैसे अन्य पूजा की जाती है वैसे ही आँवले के पेड़ की पूजा करें। पूजन विधि 8 फ़रवरी 2014 के दूसरे ब्लॉग में दी गई है। पूजा में आँवले अवश्य चढ़ाएं।
4-आँवले के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत उसके तने के चारों और लपेटते जाएँ।
5- aआंवला नवमी की कथा कहें।
6- इस दिन ब्राह्मण&ब्राह्मणी के जोड़े को भोजन कराएं अथवा सीदा ¼भोजन सामग्री½ उनके घर भिजवाएं या दें। 
7- आंवला नवमी के दिन आंवलों का दान अवश्य करें। 
8- सासुजी] ननंद] बेटी का बायना निकाले और धोक लगाकर उनको देवें या घर भिजवाएं। 

आंवला नवमी की कथा 

   एक अांवलिया नामक राजा था। राजा&रानी दोनों रोजाना सवा मन वजन के सोने के आंवले दान करने के बाद ही भोजन करते थे। उनके बेटे&बहु ने सोचा कि ऐसे तो एक दिन भूखा मरने की स्थिति आ जायेगी। उन्होंने राजा से आंवला दान करने के लिए मना कर दिया। राजा रानी रूठकर जंगल में जाकर रहने लग गए। राजा चूँकि सोने के आंवले दान नहीं कर पा रहा था इसलिए भोजन भी नहीं कर पा रहा था। राजा की आस्था देखकर भगवान ने सोचा कि यदि इसके सत को नहीं रखा तो लोगों में अच्छा सन्देश नहीं जाएगा।अतः भगवान ने रात में सपने में राजा से कहा जा देख जंगल में बहुत से आंवले के पेड़ लग रहे हैं। राजा ने सुबह उठकर देखा की सैंकड़ों आंवले के पेड़ उग आएं हैं और उन पर सोने के ही आंवले उग रहे हैं।राजा ने फिर से आंवले दान करना शुरू कर दिया। उसके पहले से भी अधिक ठाठ बाट हो गए थे। उधर राजा के बेटे बेटी दुखी हो गए थे उनको भर पेट भोजन मिलाना भी कठिन हो गया था। जनता ने राजकुमार को बताया कि वन में एक वैभवशाली राजा है जो रोज सोने के आंवले दान करता है। राजा के बेटे बहु भी कुछ मिलने की आशा में वहां पहुंचे। रानी ने महल की छत  पर से उनको देख लिया। उसने अपने मंत्री से कहा कि उन दोनों को नौकरी पर रख लो। उस औरत को मेरे रनवास में दासी रख लो। एक दिन रानी ने दासी रूपी बहु को अपने बाल धुलवाने के लिए बुलवाया।  बाल धोते समय दासी की आँखों से आंसू की बूंदें रानी की पीठ पर गिरी। रानी ने बहु से रोने का कारण पूछा। बहु बोली कि मेरी सासु माँ की पीठ पर भी आपके जैसा ही मस्सा था। वो भी रोज सवा मन सोने के आंवले दान करती थी। हमने उन्हें आंवले दान करने से मना कर दिया उससे रूठकर वे राज्य छोड़कर चले गए।  इससे हमारा वैभव भी चला गया। तब रानी बोली वो तुम्हारी सास मैं ही हूँ। तुमने हमारा तिरस्कार किया पर भगवान ने हमारा सत रखा। बेटे बहु को बहुत पछतावा हुआ उन्होंने माफ़ी मांगी और फिर से सभी साथ रहने लगे। 
हे भगवान जैसे राजा रानी का सत रखा वैसे ही सबका रखना। 

अनुकरणीय सन्देश 

1. अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करने से वैभव बढ़ता है। 
2 . आंवले को स्वास्थ्य वर्धक होने से अमृत फल माना गया है। अतः इसका दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है।
आंवले के वृक्ष की पूजा का महत्व भी इसीलिए है।  इसलिए इसकी सुरक्षा करना हमारा दायित्व है। 

गणपति की कथा & बुद्धिमान बालक 

    एक बालक गणेश जी का भक्त था। बुद्धि भी गणेश जी ने उसे तेज दी थी। उसकी भक्ति से उसकी माँ चिढ़ती थी। एक दिन इसी बात को लेकर वह माँ से लड़कर घर छोड़कर निकल गया। बोल कर गया कि मैं गणेश जी से मिलकर ही घर लौटूंगा। गणेश जी ने देखा कि  यह बालक लौटकर घर नहीं गया तो जंगली जानवर इसे मार डालेंगे। मेरा नाम बदनाम हो जाएगा। अतः गणेश जी ने एक बूढ़े ब्राह्मण का रूप धार कर बालक से पूछा कि तू कहाँ जा रहा है। बालक ने कहा कि मैं गणेश जी से मिलने जा रहा हूँ। तब उन्होंने कहा कि मैं ही गणेश हूँ। मैं तुझसे बहुत प्रसन्न हूँ तुझे जो चाहिए मांग ले लेकिन एक शर्त है कि एक  ही बार में मांग लेना। लड़का अपनी तीव्र बुद्धि से सोच कर बोला & क्या मांगू बापूजी
   ढोला हिंगराज का ] पूछा गजराज का ] दाल भात] गेंहू के फलके ] उसपर ढेर हो खांड का ]
   परोसन वाली ऐसी मांगू जैसे फूल गुलाब का। 
    गणेश जी बोले कि बालक तू तो बड़ा बुद्धिमान है] तूने तो एक ही बार  में सब कुछ मांग लिया।  जा ऐसा ही होगा। बालक घर गया।  उसने देखा बहुत ठाठ बाट हो गए थे। उसने अपनी माँ से कहा देख & गणेश जी की कृपा और आशीर्वाद से हुआ है यह सबकुछ।  माँ बहुत प्रसन्न हो गई। 
हे गणेश जी महाराज जैसे उस बालक को धन दिया वैसे ही सब को देना। 

अनुकरणीय सन्देश 

1 गणेश जी की आराधना से बुद्धि तीव्र होती है। 
2- तीव्र बुद्धि का उपयोग करके ही हम धन सम्पदा अर्जित कर सकते हैं 

  
       
     
  

puja,wrat,upwas,kathayen aur unake sandesh- Dubadi saat saath me ganpati ki kahanii - font used KrutiDev 010



 दुबड़ी सात 

पूजन विधि 

1- स्नान] प्राणायाम एवं ध्यान करें।
2. गणपति की स्थापना एवं पूजा करें।
3. एक पटिये पर चित्र में बताये अनुसार गीली मिटटी से दुबड़ी सात मांडे।
4. जैसे अन्य पूजा की जाती है वैसे ही पूजा करें। (8 फरवरी 2014 के दूसरे  ब्लॉग में सम्पूर्ण पूजन विधि दी गई है।) यहाँ भिगाए हुए मूंग या मोठ भी चढ़ाये जाते हैं।
5. दुबड़ी सात की कथा कहें। 
6. सासुजी, ननंद का  बायणा निकाले और उन्हें धोक लगाकर देवें या भिजवाएं। 

दुबड़ी सात की कथा 

एक साहुकार था।  उसके सात बेटे थे। बेटों के विवाह के फेरों के पूरा होने से पहले ही बेटे मर जाते थे। इस प्रकार 6 बेटे मर गए। डरते-डरते सातवे बेटे का विवाह मांडा । सब बहिन बेटियों को बुलाया। सबसे बड़ी भुआ पीहर  आते समय मार्ग  में  एक कुम्हार के यहाँ रुकी। उसका मन बुझा हुआ था कोई ख़ुशी नहीं थी। कुम्हार ढाकणी घड़ रहा था। भुआ ने पूछा तू क्या कर रहा है? वह बोला कि गांव के साहूकार के बेटे का विवाह है उसीके लिए ढाकणी घड़ रहा हूँ। पर उसका बेटा मर जाएगा। भुआ ने पूछा कि  बेटा नहीं मरे इसका कोई उपाय नहीं है? कुम्हार ने बताया की यदि बींद की कोई भुआ  दुबड़ी सात का व्रत करे, ठंडा खाए, काँटा फाँसे, बींद  के सारे नेग उलटे कर गालियां देती रहे, फेरे के समय कच्चा दूध और तांत का फंदा लेकर बैठ जाए, आधे फेरे होने के बाद एक सांप बींद को डसने आएगा, तब उसके सामने कच्चे दूध का करवा रखदे, जब सांप दूध पीने  लगे तो उसे तांत के फंदे में फंसा ले, जब सर्पिणी  उसे छुड़ाने के लिए आए, तब भुआ उससे वचन ले कि तू मेरे सब भतीजों को जिन्दा कर  उनको बहुएं दे तो ही मैं तेरे पति सांप को छोडूंगी।  सारी बात सुनकर भुआ वहां से रवाना होकर पीहर में अपने घर में गालियां देती हुई घुसी। सब उसके इस व्यवहार से अचम्भित रह गए। पर कोई कुछ नहीं बोला आखिर भुआ जो ठहरी।  सारे नेग उलटे करती गई, घर की अन्य औरतें कुछ बोलती तो भी ध्यान नहीं देती। जिद करके बारात भी पिछले दरवाजे से निकलवाई। उसी समय सामने का द्वार टूट कर गिर गया। सब उसकी प्रशंषा करने लगे, अब तो जैसा वह कह रही थी वैसे ही सब मान रहे थे। फिर जिद करके बरात में शामिल हो गई। साहूकार फिर भी नाराज ही था। उसने कहा, "ये जायेगी तो मैं नहीं जाऊंगा वैसे भी मैं जाता हूँ तो मेरे बेटे मर जाते हैं।" वो नहीं गया। बरात को  रास्ते में बरगद के पेड़ की छाया में से निकालने लगे तो गालियां देते हुए उसने बारात को धूप में से ही निकालने की जिद की।  उसकी जिद के चलते जब बारात को धूप  में से निकालने लगे तभी एक बहुत बड़ी डाल टूट कर गिर गई। सब फिर से भुआजी की प्रशंषा करने लगे। फिर दूल्हे को भुआ की जिद के कारण दुल्हन  के घर के  पिछले द्वार से अंदर ले जाने लगे, तभी आगे का दरवाजा टूट कर गिर गया। फिर वह  गालियां देती हुई  फेरे में भी बैठ गई। जब सांप आया तो उसने उसे फंदे में फंसा लिया। जब सर्पिणी  उसे छुड़ाने आई तो भुआ बोली, " हे सर्पिणी , मैं तेरे पति को तभी छोडूंगी जब तु मेरे सारे भतीजों को  जीवित कर देगी उनको बहुएं भी दे देगी। तू मुझे वचन दे। " सर्पिणी  बोली, मैं तुझे वचन देती हूँ ऐसा ही होगा। " भुआ ने सांप को छोड़ दिया। धूम धाम से विवाह संपन्न हुआ। सब भुआजी से खुश हो गए। जब बरात लौटने लगी तो रास्ते में दुबड़ी सात एक वृद्धा के रूप में मिली। उसने भी दुबड़ी सात की पूजा और व्रत करने के लिए कहा।    भुआजी ने कहा, " मैं दुबड़ी सात की पूजा कराना चाहती हूँ व्रत कराऊंगी पर कैसे कराऊं, समझ में नहीं आ रहा है। " वृद्धा मुस्कुराती हुई वहाँ से चली गई।  उसके जाने के बाद पूजा के बारे में सोचती हुई जब भुआ  गाड़ी  में से उतरी तो  देखा  कि वहां दुबड़ी सात का पाटिया मंडा हुआ रखा था।  पूजन सामग्री भी रखी हुई थी।  ताजा दूब उगी हुई थी।  पूजा करने की विधि तो उसे पता ही थी।  उसने पुरे मनोयोग और श्रद्धा के साथ पूजा की। बायना निकाला, काँटा फंसाया और कथा कही। बारात गाँव में पहुंची। जब साहुकार ने सातों बेटों को जीवित देखा तो उसे बहुत ही आश्चर्य हुआ।  सारे बेटे साहूकार के पैर पड़ने लगे तो साहूकार बोला, " बेटा, आज अगर तुम पुनः जिन्दा हो सके हो तो अपनी भुआ के कारण। ये जीवन तुम्हारी भुआ का दिया है। इसलिए सब इनके पैर पड़ो।" बाद  में साहूकार ने सारे गाँव में ढिंढोरी पिटवा दी कि अपने बच्चों की जीवन की रक्षा  के लिए हर कोई दुबड़ी सात का पाटिया मांडेगा, व्रत करेगा, पूजा करेगा, बायना निकालेगा, काँटा फँसायेगा और कहानी सुनेगा।
हे दुबड़ी माता जैसे  साहूकार के बेटों के  जीवन की रक्षा की  वैस ही सबके साथ करना। 

अनुकरणीय सन्देश: 

1. किसी भी संकट का समाधान सम्भव है। 

2.अपने परिवार के हितचिंतक की अनर्गल या उलजलूल बातों के पीछे भी कुछ न कुछ हित ही छुपा हो सकता है।  
3.  धैर्य के साथ किये गए प्रयास से समस्या का समाधान किया जा सकता है। 

गणपति की कथा:

एक ब्राह्मण था। वो प्रतिदिन सुबह नदी पर स्नान करके आता और गणपति की पूजा करता था। ब्राह्मणी को इससे चिढ़ होती थी। एक दिन उसने जब ब्राह्मण नदी पर गया हुआ था तब गणपति की प्रतिमा को छुपा दिया। ब्राह्मण स्नान कर लौटा  और प्रतिमा के लिए पूछा तो उसने नहीं दी। ब्राह्मणी बोली, " मैं दिन भर खटती रहती हूँ और तुम निखट्टू पूजा पाठ के बहाने आराम फरमाते रहते हो।" ब्राह्मण बोला, " तू कुछ भी करले, मैं तो मेरे गणपति की पूजा किये बिना अन्न का एक दान भी मुंह में नहीं डालूँगा। "   इन दोनों की नौक-झोंक को देखकर गणपति की प्रतिमा मुस्कुराने लगी। ब्राह्मणी को मुस्कुराती प्रतिमा देखकर और गुस्सा आ गया। वो बोली, " वो पड़ी  तुम्हारी मूर्ति". ब्राह्मण  की। गणपति ने उसकी भक्ति से प्रसन्न हो कर कहा, " तुझे मेरी पूजा करते हुए कई बरस हो गए हैं, मैं प्रसन्न हूँ, बोल क्या इच्छा है तेरी? " ब्राह्मण ने कहा, " अन्न चाहूँ, धन चाहूँ और जगत के सब सुख चाहूँ। " गणपति ने कहा, " तूने तो सब कुछ मांग लिया।  जा दिया। " ब्राह्मणी भी इतना प्रताप देख कर गणपति की पूर्ण श्रद्धा के साथ पूजा-अर्चना करने लगी।  
हे गणपति महाराज जैसे ब्राह्मण को सब सुख दिए वैसे ही सबको देना। 

अनुकरणीय सन्देश:

1. नियम-धर्म के साथ अपने ईष्ट की पूजा-अर्चना करने से सुख की प्राप्ति होती है। 

  

      


  

रविवार, 9 फ़रवरी 2014

puja,wrt,upws,kathayen aur unake sandesh - karawa chauth ki kahanii saathme shri ganesh ki kahanii -

करवा चौथ 

यह व्रत कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को सुहागन स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु एवं अच्छे स्वास्थ्य की मंगल कामना करने के लिए किया जाता है। इसे करक चतुर्थी भी कहते हैं। यह वर्ष भर की महत्वपूर्ण चार चौथ में से एक है। यह व्रत पति-पत्नी के पवित्र बंधन का प्रतिक है। 

विधि- 

  • प्रातःकाल स्नानादि से निवृत होकर सुहागिन स्त्री के समस्त वस्त्राभूषण से विभूषित होकर गणेशजी (चौथ माता) का पूजन करने का विधान है। 
  • शिव-पार्वती एवं कार्तिकेय का पूजन भी किया जाता है।
  • पूजन में जल से भरे  मिट्टी के करवों  की पूजा की जाती है। करवा चौथ की कथा कहें। 
  • वैसे आजकल सारी पूजा सांय काल को की जाती है। 
  • दिन भर निराहार रहा जाता है, जल भी नहीं पिया जाता है। 
  • रात्रि में चन्द्रमा को अर्क दिया जाता है। उसके बाद पति या देवर द्वारा करवे से व्रती को जल ग्रहण कराया जाता है। इसके बाद मिष्ठान युक्त भोजन किया जाता है। 
  • सामान्य पूजन का सम्पूर्ण तरीका उसी तरह से है जैसे 9 फ़रवरी 2014 के ब्लॉग में बताया गया है। 
  • आगे दो कथाये दी जा रहीं हैं।  एक पौराणिक कथा है तथा दूसरी आम जान में प्रचलित कथा है।  कोई भी कथा कही जा सकती है। 

करवा चौथ की पौराणिक कथा-

महाभारत काल में पांडव वनवास पर थे। इस समय अर्जुन इन्द्रनील पर्वत पर तप करने गया हुआ था। जब कई दिनों तक अर्जुन नहीं लौटा तो द्रौपदी को चिंता हुई। एक दिन जब श्रीकृष्ण पांडवों से मिलाने आये तो द्रौपदी  ने अपनी चिंता से उन्हें अवगत कराया। श्रीकृष्ण ने कहा, " हे कृष्णे, तुम अपने पति की कुशलता के लिए करवा चौथ का व्रत करो।" द्रौपदी ने पूछा, " भैया, मैं इस व्रत का माहात्म्य जानना चाहती हूँ।  कृपया मुझे बताएं ।"   श्री कृष्ण बोले- सुनो, भगवान आशुतोष ने इस सम्बन्ध में एक कथा माता पार्वती को  सुनाई थी वह मैं  तुम्हे सुनाता हूँ। इंद्रप्रस्थ नगरी में वेदशर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी।  पुत्री का नाम वीरावती था। उसका विवाह एक सुदर्शन नामक युवक के साथ हुआ। ब्राह्मण के सातों पुत्र विवाहित थे। एक बार करवा चौथ के  व्रत  वाले दिन सभी भाभियों ने तो व्रत पूर्ण विधि विधान से सफलता पूर्वक कर लिया परन्तु वीरावती अल्पायु के कारण व्रत की कठोरता को सहन नहीं कर पाई।  दिनभर निर्जल रहकर भूख को शान न कर पायी और निढाल हो गई। उसके भाइयों से अपनी प्यारी बहिना का यह हाल देखा न गया। भाइयों  की चिंता पर भाभियों ने बताया की भूख के कारण वीरावती का यह हाल हुआ है। यह सुनकर भाइयों ने खेत में जाकर आग जलाई और उसपर कपड़ा तानकर चंद्रोदय जैसा दृश्य बना दिया। फिर बहन से जाकर कहा कि देख चन्द्रमा उदय हो गया है। यह सुनकर वीरावती ने अर्ध्य देकर भोजन कर लिया। नकली चन्द्रमा को अर्ध्य देने से उसका व्रत खंडित हो गया। इससे उसका पति अचानक बीमार पड़ गया। वह ठीक न हो सका।  जैसे तैसे दुखी मन से दिन निकल रहे थे। एक बार स्वर्ग के राजा इंद्र की पत्नी  इन्द्राणी करवा चौथ का व्रत करने के लिए पृथ्वी पर आई। इसका पता लगने पर वीरावती इन्द्राणी के पास गई  और उससे अपने पति के स्वस्थ होने का उपाय पूछा। इन्द्राणी ने कहा कि तुम्हारा व्रत खंडित हो गया था इसलिए ऐसा हुआ है। अगर तू पूर्ण विधि विधान से पुनः करवा चौथ का व्रत बिना खंडित हुए करेगी तो तेरा पति स्वस्थ हो जाएगा। वीरावती ने ऐसा ही किया।  उसका पति पूर्णतया स्वस्थ हो गया। हे कृष्णे तभी से करवा चौथ का व्रत प्रचलित है। व्रत की महिमा सुनकर द्रौपदी  ने भी व्रत किया फलस्वरूप शीघ्र ही अर्जुन लौट आया।

 प्रचलित कथा -

एक नगर में एक साहूकार था। उसके सात बेटे-बहु और एक सबसे छोटी बेटी थी। आठों भाई-बहिन साथ बैठकर भोजन करते थे। एक दिन भोजन के समय बहिन नहीं दिखी तो भाइयों ने उसे बुलाया तो उसने यह कहकर कि आज करवा चौथ का व्रत है इसलिए मैं चाँद उगने के बाद अर्ध्य  देकर ही भोजन करुँगी। यह सुनकर भाइयों ने अपने साथ ही बहिन को भोजन करानेके लिए एक उपाय किया। उनमें  से तीन भाइयों ने एक टीले के पीछे जाकर एक दिया जलाया और उसके सामने एक छलनी रखदी जिससे  चन्द्रमा की आकृति बन गई। अन्य भाइयों ने बहिन से कहा देख चाँद उग आया। वो भोली बहिन अपनी भाभियों के पास गई और बोली - चलो, अर्ध्य देते हैं, चाँद उग आया है। … उसकी भाभियों ने अपनी प्यारी ननंद से ठिठोली करते हुए कहा - जाओ ननन्द बाईसा, अभी तो तुम्हारा चाँद उगा है, हमारा तो बाद में निकलेगा।.… ननंद मजाक को सच समझ बैठी और पूजा करके भाइयों के साथ  जीमने बैठ गई।  पहला ग्रास लेते ही बाल आ गया, दूसरे में छींक आ गई और तीसरा ग्रास हाथ में लिया ही था कि उसके ससुराल से उसे लिवाने आ गए क्योंकि उसके पति की तबियत बहुत ख़राब थी। उसे विदा  करने के लिए उसे अच्छी साड़ी पहनाने के लिए पेटी खोली  तो  सफ़ेद साड़ियां ही निकली।  मजबूरी में सफ़ेद साड़ी में ही विदा किया।  विदा   करते हुए उसकी माँ ने उसे एक स्वर्णमुद्रा  देकर कहा- मार्ग में जो भी मिले उसे धोक लगाना, जो तुझे सदा सुहागन रहो कहे उसे यह मुद्रा देकर अपनी साड़ी के पल्लू में गाँठ लगा लेना। … मार्ग में जो भी मिला उसके उसने धोक लगाईं, सबने एक ही आशीर्वाद दिया कि तुझे भाइयों का सुख मिले। जब वह ससुराल पहुंची तो वहाँ द्वार पर ही उसका इंतज़ार करती उसकी सबसे प्यारी बड़ी  ननंद मिली। उसने बड़ी ननंद के धोक दी। ननंद ने उसे गले लगाकर आशीर्वाद देते हुए कहा -  शील-सपूती हो, सात पुत्रों का सुख देख, मेरे भाई का सुख देख। .... यह सुनकर बेटी ने स्वर्ण मुद्रा अपनी ननंद को दे दी और साड़ी के पल्लू में गाँठ लगा ली। अंदर गई तो सास ने रूखे स्वर में कहा- ऊपर जा, वहां तेरे पति की लाश पड़ी है, उसके पास जाकर बैठजा। 
वह ऊपर जाकर बैठ गई और पति के शव के ऊपर  पंखे से हवा करने लगी। वह उसके पति के शव का ऐसी सार-संभार करने लगी जैसे की वह सो रहा हो। उसने दाह संस्कार के लिए शव भी नहीं ले जाने दिया। उसकी सुहाग की निशानियों को  जब दूसरी महिलाओं ने मिटाना चाहा तो उसने भारी विरोध किया। उसकी बड़ी ननंद ने उसकी बात को रखते हुए सब महिलाओं को भगा दिया और स्वयं भी अपना आशीर्वाद दोहराती हुई नीचे चली गई। इससे उसकी सास और गुस्सा हो गई। बेटी पति के शव  के पास बैठी रहती।  उसकी सास उसके लिए बची-खुची रोटी-दाल दासी के हाथ भिजवा देती थी। एक महीना बिता तो मक्सर् माह की चौथ माता आ गई। मक्सर् की चौथमाता ने आवाज  लगाई - करवा ले-करवा ले, भाइयों की लाड़ो करवा ले, दिन में चाँद उगाने वाली करवा ले, अपने पति को खोने वाली करवा  ले।.… बेटी बोली - हे चौथ माता,  मैं  वैसे ही दुखी हूँ, मेरी  मजाक मत बनाओ, ये बिगड़ी अब तुम्हे ही सुधारनी है। तुझे मेरा सुहाग लौटाना पडेगा।  … चौथ माता बोली - पोष माह वाली माता मुझसे बड़ी है वही तेरा सुहाग लौटा सकेगी। … यह कर चौथ माता चली गई। इस तरह हर महीने की दोनों चौथ माताएं आती और आगे वाली मुझसे बड़ी है कहकर चली जाती। ऐसा करते हुए ग्यारह महीने  बीत गए। आसोज माह की चौथ भी  आई, वह बेटी के दुःख से दुखी होकर बोली- बेटी, तेरे से जो भूल  हुई है उसके लिए करवा चौथ तेरी परीक्षा ले रही है। तेरा पति मरा नहीं हैं, वह केवल बेहोश है। तू अगली करवा चौथ के पैर पकड़ लेना और तब तक मत छोड़ना जब तक वो तेरे पति को स्वस्थ करने  का वचन न देदे। … आखिर  कार्तिक माह की करक चौथ यानी करवा चौथ आई और आवाज लगाई - करवा ले करवा ले, भाइयों की दुलारी करवा ले, दिन में चाँद उगाने वाली करवा ले, व्रत को तोड़ने वाली करवा ले, पति को खोने वाली करवा ले।
साहूकार की बेटी ने जैसे करवा चौथ को देखा उनके पैर पकड़ लिए और रोते हुए बोली - हे चौथ माता, तू तो अंतर्यामी है, तू तो जानती ही है, मैं नासमझ अपने भाइयों के बहकावे में आ गई, मैंने जानबूझ कर तेरा अपमान नहीं किया। इस भूल का प्रायश्चित करते हुए मुझे पूरा एक बरस हो गया है।  हे माता अब तो मुझे क्षमा करदे, दया कर मेरे पति की बिमारी ठीक कर उसे मुझे लौटा दे।  .... करवा चौथ ने नकली क्रोध दिखाते हुए कहा - हे पापिन, हत्यारिन, व्रत भंग  करने वाली, मेरे पाँव छोड़। तुझे अपनी  करनी का फल तो भुगतना ही पड़ेगा। … बहु बोली - हे माता, इतनी  निष्ठुर मत बन, जो भी हुआ उसमें  मेरी कोई गलती नहीं थी, मेरी जरासी भूल की यदि तू इतनी बड़ी सजा देगी तो तुझे कोई नहीं पूजेगा, मेरी बिगड़ी को तुझे ही सुधारना होगा, जब तक तू मेरे पति को स्वस्थ करने का वचन नहीं देती मैं  तेरे  चरण छोड़ने वाली नहीं। … यह कहकर वह माता के चरणो से लिपट गई। चौथ माता तो वैसे भी उसकी परीक्षा ले रही थी उसने प्रसन्न होकर अपनी आँखों से काजल, मांग से सिंदूर, बिंदी से कंकु तथा हाथों से मेहंदी निकालकर छोटी अंगुली से पति के शरीर पर छींटा दिया। पति एकदम से घोर मूर्छा से बाहर आ गया। वह उठकर बैठ गया। तथा पत्नी  से बोला - आज तो बहुत गहरी और लम्बी नींद आई।  बहु बोली - कैसी नींद, मुझे बारह महीने हो गए हैं आपकी देख भाल करते हुए, करवा चौथ माता के प्रताप से फिर से होंश में आये हो, वैद्यों ने तो आपको मरा हुआ ही घोषित कर दिया था, पर मुझे चौथ  माता पर पूरा भरोसा था, आज उन्होंने ही मेरे को सुहाग लौटाया है। .... पति ने कहा  तो तुम्हे चौथ  माता की विधिवत पूजा करनी  चाहिए। पति के कहने पर बहु ने करवा चौथ की पूजा की, करवा मनसा, चाँद को अर्ध्य दिया।  फिर दोनों हंसी-ठिठोली करने लगे। दासी रोटी लेकर आई तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नही रहा। वो दौड़ी-दौड़ी नीचे सासुजी के पास गई और बेटे के  जीवित  हो जाने की बात बताई। सास ऊपर गई, बहु ने सासु के धोक लगाई, बहु ने बताया कि वो चौथमाता से अपने पति वापस ले आई है। सास ने उसे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया और सारे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि सब सुहागन स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा के लिए तेरह करवा चौथ  का व्रत करेगा। 
हे चौथ माता जैसे साहूकार की बेटी के सुहाग की रक्षा की वैसे ही सब सुहागनों के सुहाग की रक्षा करना। 

अनुकरणीय सन्देश -

  • सही स्थिति का पता लगाने के बाद ही कोई कार्य करना चाहिए। 
  • अपनी सुविधा के अनुसार किसी व्रत उपवास को तोडना उचित नहीं । 
  •  असंभव से दिखने वाले कार्य भी कठोर साधना, निरंतर प्रयास और ईश्वर पर आस्था रखने  से  सम्भव हो जाते है। 
  • किसी भी परिस्थिति में हताश नहीं होना चाहिए।

गणेशजी की कथा - गणेशजी ने बच्चे को डूबने से बचाया

एक सेठानी अपने आठ बरस के बच्चे के साथ तालाब के किनारे घूम रही थी । अचानक बच्चे का पांव फिसल गया और वह तालाब में गिर गया। सेठानी ने सहायता के लिए लोगों को पुकार।  लेकिन आस-पास कोई समझदार बड़ा व्यक्ति नहीं था जो तैरकर बच्चे को बचा सके। सब बस बचाओ-बचाओ चिल्ला रहे थे। सेठानी ने अपने ईष्ट देव गणेशजी को याद किया।  इतने में एक बालक दौड़ता हुआ आया और तालाब में कूदकर बच्चे को बचा लाया। उसने बच्चे के पेट में भरा पानी भी निकाल दिया।  बच्चा ठीक हो गया। सेठानी ने बालक का धन्यवाद करने के लिए देखा तो वह बालक कहीं नजर नहीं आया। उसने लोगों से पूछा वो बालक कहाँ गया।  तो लोगों ने कहा कि  वो जिधर से भागता हुआ आया थो उधर ही लौट गया। सेठानी ने पूछा किधर से आया था।  लोगों ने एक ओर संकेत कर  दिया। सेठानी बालक को खोजती हुई उस ओर गई तो वहां कोई नहीं दिखा पर उसने देखा की वहाँ एक छोटा सा गणेशजी का स्थान था। सेठानी को समझते देर नहीं लगी कि यह चमत्कार गणेशजी का ही है। उसने हाथ जोड़कर गणेश जी को धन्यवाद दिया। बाद में सेठानी ने उस स्थान पर  एक भव्य मंदिर बना दिया। आज भी उस स्थान पर लाखों लोग अपनी कामना पूर्ति के लिए आते हैं। 
हे गणेशजी महाराज जैसे सेठानी के लाल की रक्षा कर सहायता  की वैसे ही सबकी सहायता करना। 

अनुकरणीय सन्देश -

  • आपातकाल में आपके इष्टदेव आपकी सहायता अवश्य करते हैं। 
  • आपातकाल में अपना धैर्य न खोएं। 







 

puja,wrat,upwas, kathayen aur unake sandesh - Bachhbaaras ki kahani - font used KrutiDev 010

बछ बारस (गोवत्स-द्वादशी ) 


  • बछ बारस का  त्यौहार भाद्रपद कृष्ण-पक्ष की द्वादशी (बारस) को आता  है। 
  • बछ बारस का  पर्व भी पुत्र की मंगल कामना के लिए किया जाता है।
  •  बछ बारस के दिन पुत्रवती माताओं द्वारा  गाय और बछड़ों का पूजन किया जाता है। 

पूजन विधि 

  • बछ बारस के दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है।  यदि बछड़े वाली गाय उपलब्ध  न हो तो  गीली मिट्टी  से गाय एवं बछडे की मूर्तियां बनाकर एक पटिये पर रखकर उनकी पूजा की जाती है।
  • गणेशजी की स्थापना कर पूजा करें। पूजन विधि 8 फ़रवरी 2014 के ब्लॉग में दी गई है। 
  • गाय बछड़े की पूजा भी इसी प्रकार करें। 
  • इन पर दही, भीगा हुआ मोटा  अनाज जैसे मक्का/बाजरा, उसका आटा, घी आदि चढ़ाये। 
  • बायना निकाल कर सासुजी को दें। 
  • मोटे अनाज से बना भोजन करें, गाय का दूध-दही, गेहूं, चाकू से कटी सब्जी और चावल का प्रयोग न करें। 
  • अपने पुत्र के कमीज पर स्वस्तिक बनाकर/तिलक लगाकर जटायुक्त नारियल देवें तथा कुए की पूजा करें। कुए के प्रतिक के तौर पर गोबर/मिटटी  से घेरा बनाकर उसमे पानी भर कर पूजन किया जाता  है।कुछ समाजों में पुत्रियों  को नारियल का आधा गोला शक्कर भरकर दिया जाता है। 

बच बारस की कथा 

(अलग अलग अंचल में अलग अलग कथाएं प्रचलित हैं यहाँ एक कथा दी जा रही है जिसका सबसे अधिक वाचन होता है )
एक साहूकार था।  उसके सात बेटे-बहु और कई पोते थे। उसने एक तालाब बनवाया। बारह बरस निकल गए पर वह तालाब पानी से नहीं भरा। उसने एक पंडित से कारण पूछा तो पंडित ने बताया कि बड़े बेटे या बड़े पोते की बली देने से इसमें पानी आ जाएगा। यह जानकर साहूकार ने अपनी बड़ी बहु को पीहर भेज कर पीछे से बड़े पोते की  बली देदी। बली  के बाद संयोगवश  जोरदार बरसात से तालाब में पानी भर गया। आगे जब बछ बारस आई तो उसकी पूजा करते हुए सेठानी ने दासी से कहा कि तू गेहूं ला कर पका लेना और धान ला कर उछेड़ लेना। गेहूंला और धानुला गाय के दोनों बछड़ों के नाम थे। पूजा वाले दिन बड़ी बहू भी आ गई थी उसको अपना बड़ा बेटा दिखाई नहीं दिया, उसने सोचा कि  कहीं खेल रहा होगा। पूजा के बाद जब सारे पोते-पोती खेल रहे थे तो तालाब में से कीचड़ से लथपथ बड़ा पोता जिसकी कि बली दी गई थी निकला और बोला मैं भी खेलूंगा। उसे देखकर बहु ने अपनी सास से पूछा कि  यह सब क्या चक्कर है, तो सास ने दुखी मन से सारी  बात समझा दी दोनों ने बछबारस को धन्यवाद दिया कि  है माँ  तूने हमारी लाज रखदी। जब वे घर पर पहुंची तो देखा कि गाय के बछड़े नहीं है तो दासी से पूछा। दासी ने बताया कि  आपके  कहने से मैंने तो उन्हें काट कर पका दिया।  सासु बोली, " अरे पगली ये क्या किया तूने, घोर अनर्थ हो गया, मैंने तो गेहूं और धान पकाने के लिए कहा था तूने गलत समझ कर बहुत बड़ा पाप कर दिया । " साहूकार भी बहुत नाराज हुआ और बोला , " अरे मूर्खा, एक बार और पूछ लेती,एक पाप का प्रायश्चित करके आये और तूने दूसरा भयंकर पाप सिर पर चढ़ा दिया। हे माता इसका प्रायश्चित कैसे होगा। " यह कहते हुए उसने पकाए हुए बछड़ों को गड़वा दिया। शाम को जब गायें लोटी तो उनको अपने बछड़े दिखाई नही दिए। गायों ने उस जगह पर खोदा तो जीवित बछड़े निकले।  वे दौड़ कर अपनी माँओं का स्तनपान करने लगे। साहूकार ने जब यह देखा तो उसको प्रसन्नता भरा  आश्चर्य  हुआ। यह देखकर सबको विश्वास हो गया कि यह सब बछ बारस की पूजा का प्रताप है। यह सब उसीकी कृपा से हुआ है। उसने सारे गाँव में यह सूचना भिजवादी की अब से सभी समाजों की माताएं बछबारस के दिन बछड़े वाली गाय तथा कुए-तालाब की पूजा करेगी। 
हे बछबारस माता जैसे साहूकार-साहुकारनी के बच्चों को बचाया और गौ माता के बच्चों को जीवित कर उनकी लाज रखी वैसे ही सबकी संतानों की रक्षा करना और उनकी लाज रखना।  

अनुकरणीय सन्देश -

  • बली देना पाप है। बलि देने से वर्षा नहीं होती है। 
  • गौधन पूजनीय है इसलिए उसकी पूजा की जानी चाहिए। 
  • किसी भी बात को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। यदि किसी प्रकार का भ्रम हो तो दुबारा पूछ कर स्पष्ट कर लेना चाहिए।   

 गणेश जी की कथा -

एक गाँव में सुरेश और उमेश दो कुबड़े साथ-साथ रहते थे। सुरेश बहुत धनी  और उमेश बहुत गरीब था। दोनों में गहरी मित्रता थी तथा दोनों ही गणेशजी के परम भक्त थे। एक दिन उमेश ने  सुरेश से कहा , " मैं तुम पर बोझ बनकर नहीं रहना चाहता हूँ। तब सुरेश ने कहा, " ऐसा करो तुम मेरे काम में हाथ बंटा दिया करो। "  उमेश ने उसकी बात रखते हुए हर काम में सहयोग करना प्रारम्भ कर दिया। धीरे धीरे सुरेश उमेश से बहुत अधिक काम लेने लग गया। वह अपमान भी करने लग गया, व्यवहार भी रुखा हो गया। एक दिन दुखी होकर उमेश वन में चला गया। उसने अपने आराध्य गणेश जी को याद किया।  गणेश जी पहले से ही उमेश की अवस्था से परिचित थे। वे एक यक्ष क रूप धरकर उमेश के समक्ष प्रकट हुए। उस पर दया कर उन्होंने उसे एक सोने के सिक्कों से भरी थैली दी और कहा , "  यदि  सदैव अच्छा आचरण करोगे तो तुमको इस थैली से हर आवश्यकता के समय सिक्के मिलते रहेंगे। " यह कहते हुए उसकी पीठ पर हाथ फेरा।  इससे उसकी कूबड़ गायब हो गई। जब उमेश  घर गया तो उसने सारी  बात सुरेश को भी बता दी।  सुरेश के मन में लोभ जागा । वह भी जंगल में गया, गणेश जी को याद किया, यक्ष रूप में गणेश जी उसके सामने प्रकट हुए, गणेश जी उसके मन के लोभ को जानते थे, उन्होंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा तो एक कूबड़ और हो गई, सिक्कों की थैली भी नहीं दी। उमेश घबरा गया। उसने अपने किये के लिए क्षमा करने की प्रार्थना की।  गणेश जी ने कहा, " तूने अपने मित्र का दिल दुखाया है, उसके साथ दुर्व्यवहार किया है, लोभ किया है,  इसकी सजा तो भुगतनी ही होगी। परन्तु तू मेरा भकत है इसलिए यदि तू अपने किये पर सच्चे मन से सुरेश से क्षमा मांग ली तो तेरी कूबड़ ठीक हो जायेगी। " उमेश गणपति का आभार व्यक्त करते हुए शीघ्रता  से घर गया। उसने मित्र से सच्चे मन से क्षमा प्रार्थना की।  उसका कष्ट दूर हो गया।  
हे गणेशजी जैसे  तुमने सही आचरण करने वाले उमेश को दिया और सुरेश को क्षमा किया वैसे ही सबके साथ करना ।  

अनुकरणीय सन्देश -

  • सदा सत्कर्मों के पथ  पर चलें। 
  • भगवान भी उन्हीं का साथ देता है जो सदाचारी होते हैं। 
  • अनावश्यक किसी को तंग करना स्वयं को दुःख पहुँचाता है।  
  • लालच बुरी बला  है। 
  • सच्चे मन से किया गया प्रायश्चित मन की ग्लानि को दूर करता है। 
  


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