कथा / पूजा से पूर्व की जाने वाली क्रिया :-
स्नान इत्यादि के पश्चात पूजा एवं कथा में एकाग्रता लाने/ ध्यान केन्द्रित करने के लिए पूर्व तैयारी स्वरुप उपयुक्त आसन पर बैठकर कम से कम 5 बार अनुलोम-विलोम प्राणायाम करना चाहिए. इसके बाद क्रमशः नाभि, ह्रदय, कंठ, नेत्रों तथा शिखा(चोंटी) स्थान पर 2-2 सेकण्ड के लिए दाहिना हाथ रखकर वहाँ अपना ध्यान केन्द्रित करें. वैसे तो अन्य स्थानों पर भी ध्यान केंद्रित किया जाता है परन्तु ये प्रमुख स्थान हैं. अतः इन पर ध्यान केन्द्रित करना ही चाहिए. वास्तव में देखा जाए तो हमारे ऋषि-मुनियों को हमारी शरीर की आतंरिक सरंचना का पूरा ज्ञान था. जिन स्थानों पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए ऊपर लिखा गया है उनमें से कुछ स्थानों पर स्थित ग्रंथियां(glands) शरीर के लिए अति आवश्यक पदार्थों(harmones आदि) का निर्माण करती है, ध्यान केन्द्रित करने से इन पदार्थों के निर्माण की प्रक्रिया तीव्र हो कर अधिक लाभ मिलता है. ध्यान के बाद पूजा प्रारम्भ करें. इस क्रिया को किसी भी पूजा को प्रारम्भ करने से पहले करना आवश्यक होता है परन्तु जानकारी नहीं होने से इसकी पालना नहीं की जाती है जिससे यथेष्ट लाभ नहीं मिल पाता है.(वेदों में अनुलोम-विलोम प्राणायाम को आतंरिक स्नान के रूप में माना गया है. इस क्रिया से नाड़ी संस्थान में पहले से संचित हो चुके अपशिष्टों/विजातीय तत्वों की शुद्धि होती है. जिस तरीके से जल में एकाकार होकर हम भौतिक रूप से शुद्धता को प्राप्त करते हैं वैसे ही ध्यानावस्था में हम अपने आपको अपने ईष्ट या देवता से एकाकार हो कर आत्मिक रूप से स्नान करते हैं.)
पूजन विधि :-
महत्वपूर्ण नोट : -
सबसे पहले यह कहना उपयुक्त होगा कि भगवान भाव के भूखे होते हैं. यदि पूजन में किसी भी प्रकार की त्रुटी या कमी रह जाए अथवा बीच में किसी प्रकार व्यवधान उत्पन्न हो तो उसे मन में न लायें, किसी प्रकार के अनिष्ट होने की आशंका न करें, अनावश्यक रूप से भयभीत न हों. शंका या भ्रम पाल लेने पर पूजा से अर्जित मानसिक दृढ़ता में कमजोरी आती है. ईश्वर कभी भी किसी से इस बात के लिए नाराज नहीं होते हैं कि किसी ने उनकी पूजा सही प्रकार से नहीं की. हाँ, यह बात अवश्य है कि गलत कार्यों को करने वालों को ईश्वर का साथ नहीं मिलता है. वे अपनी करनी का फल भुगतते ही हैं. गलत कामों को करने से डरें. पूजा को पूर्ण श्रद्धा के साथ करें और घबराएं नहीं. ईश्वर की आराधना करने से हमारे कामों में आने वाली बाधाओं को पार करने का संबल मिलता है, प्रायश्चित करने से गलत कामों के प्रतिफलों की तीव्रता में कमी आती है.पूजन में अनावश्यक आडम्बर करने की आवश्यकता नहीं है. अपनी सामर्थ्य अनुसार व्यवस्थाएं करना चाहिए. कर्ज करके कार्य करने से प्रतिफल नहीं मिला करता है.
सामान्यत: किसी भी पूजा के प्रमुख तीन चरण होते हैं.
प्रथम चरण - गणपति पूजन एवं कलश स्थापना तथा अन्य देवताओं का पूजा में आह्वान (आमंत्रण)
द्वितीय चरण - मुख्य पूजन एवं कथा
तृतीय चरण - आरती एवं प्रसाद वितरण
पौराणिक सूत्रों के अनुसार पय स्नान के लिए प्रयुक्त मन्त्र का अर्थ है - कामधेनु से उदभूत, सब जीवों के जीवन का आधार, पवित्र एवं यज्ञ के लिए प्रयोग में लाया जाने वाले दुग्ध, हे देव, आपको स्नान के लिए समर्पित करते है.
दधि स्नान- दूध से उत्पन्न, मधुर-अम्ल स्वाद वाला, चन्द्रमा के सामान प्रभा वाला दही, हे देव, आपके स्नान के लिए अर्पित करता हूँ.
घृत स्नान- नवनीत से उत्पन्न एवं सर्वतुष्ट्कारी घृत स्नान के लिए अर्पित करता हूँ.
मधु स्नान- पराग रस से उत्पन्न, स्वादिष्ट, वीर्य और पुष्टि बढ़ाने वाला मधु आपके स्नान के लिए अर्पित करता हूँ.
शर्करा- इक्षु ( गन्ना) रस से उत्पन्न, पुष्टि बढाने वाली, शुभ शर्करा मल को उतारने के लिए आपको स्नान के लिए समर्पित करता हूँ.
पंचामृत स्नान- दूध, दही, घृत, मधु व शक्कर से बना पंचामृत आपको स्नान के लिए समर्पित करता हूँ.
गंधोदक स्नान- मलयाचल पर्वत से उत्पन्न चन्दन से बनाया यह गंधोदक आपके स्नान के लिए अर्पित करता हूँ.
शुद्ध स्नान - गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, सिन्धु, कृष्णा, कावेरी का शुद्ध जल आपके स्नान के लिए अर्पित करता हूँ.
उक्त पदार्थ किसके प्रतीक हैं तथा स्नान पर विस्तृत वैज्ञानिक/वैदिक व्याख्या के लिए श्री गुलाब कोठारी, प्रधान सम्पादक, पत्रिका समूह के लेख की साईट पर देंखे.उक्त विवरण भी उन्ही के लेखों के सौजन्य से लिए गए हैं.)
ते ह नाकं महिमानः सचंते यत्र पूर्वे साध्याः शान्ति देवा।
सबसे पहले यह कहना उपयुक्त होगा कि भगवान भाव के भूखे होते हैं. यदि पूजन में किसी भी प्रकार की त्रुटी या कमी रह जाए अथवा बीच में किसी प्रकार व्यवधान उत्पन्न हो तो उसे मन में न लायें, किसी प्रकार के अनिष्ट होने की आशंका न करें, अनावश्यक रूप से भयभीत न हों. शंका या भ्रम पाल लेने पर पूजा से अर्जित मानसिक दृढ़ता में कमजोरी आती है. ईश्वर कभी भी किसी से इस बात के लिए नाराज नहीं होते हैं कि किसी ने उनकी पूजा सही प्रकार से नहीं की. हाँ, यह बात अवश्य है कि गलत कार्यों को करने वालों को ईश्वर का साथ नहीं मिलता है. वे अपनी करनी का फल भुगतते ही हैं. गलत कामों को करने से डरें. पूजा को पूर्ण श्रद्धा के साथ करें और घबराएं नहीं. ईश्वर की आराधना करने से हमारे कामों में आने वाली बाधाओं को पार करने का संबल मिलता है, प्रायश्चित करने से गलत कामों के प्रतिफलों की तीव्रता में कमी आती है.पूजन में अनावश्यक आडम्बर करने की आवश्यकता नहीं है. अपनी सामर्थ्य अनुसार व्यवस्थाएं करना चाहिए. कर्ज करके कार्य करने से प्रतिफल नहीं मिला करता है.
सामान्यत: किसी भी पूजा के प्रमुख तीन चरण होते हैं.
प्रथम चरण - गणपति पूजन एवं कलश स्थापना तथा अन्य देवताओं का पूजा में आह्वान (आमंत्रण)
द्वितीय चरण - मुख्य पूजन एवं कथा
तृतीय चरण - आरती एवं प्रसाद वितरण
प्रथम चरण :- गणपति पूजन एवं कलश स्थापना एवं अन्य देवताओं का आह्वान
- पूजन करने के लिए स्नान करने के बाद स्वच्छ कपड़े पहन कर स्वच्छ आसन पर सुविधाजनक आसन में बैठें. यह ध्यान रहे की पूजन करने के लिए प्रतिमा/मूर्ति/ तस्वीर के एकदम सामने बैठने की बजाय थोड़ासा तिरछा/या एक तरफ हटकर बैठें.
- पूजन प्रारम्भ करने से पूर्व स्वयं के तिलक लगाएं एवं लच्छा (मौली) पुरुष अपने दाहिने हाथ तथा स्त्रियाँ अपने बाएं हाथ की कलाई पर बाँध लें.
- इसके उपरान्त घी का दीपक(दीपम् समर्पियामी बोले) तथा अगरबत्ती(धूपम् समर्पियामी बोले) प्रज्वलित करें.
- गणपति पूजन : सर्वप्रथम गणपति पूजन किया जाता है।
- साफ़ लाल कपड़ा बिछा कर उस पर गणपति की मूर्ति अथवा तस्वीर स्थापित करें. यदि लाल कपड़ा न हो तो स्वच्छ पटिए पर कंकू से स्वस्तिक बनाकर उस पर गणपति को स्थापित करें. यदि गणपति की प्रतिमा अथवा तस्वीर न हो तो साबुत सुपारी को भी गणपति के प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता है. और ये भी न हो तो स्वस्तिक बनाकर भी काम चलाया जा सकता है. वैसे भी मूर्ति, तस्वीर आदि भी तो ईश्वर के प्रतीक ही हैं.
- अब गणपति का पूजन प्रारम्भ करें. सबसे पहले गणपति को स्नान कराएं. यदि प्रतिमा है तो पहले शुद्ध जल से स्नान कराएं. फिर दूध(दुग्धम् स्नानम् समर्पियामी बोले), दही(दधि स्नानम् समर्पियामी बोले), शहद(मधु स्नानम् समर्पियामी बोले), घी(घृतं स्नानम् समर्पियामी बोले) तथा शक्कर(शर्करा स्नानम् समर्पियामी बोले) से स्नान कराकर पुनः शुद्ध जल(शुद्धोदक स्नानम् समर्पियामी बोले) से स्नान कराएं. इसका सबसे सरल एवं अच्छा तरीका यह है कि उक्त पाँचों पदार्थों को मिलाकर पंचामृत(पञ्चमृतम् स्नानम् समर्पियामी बोले) बनालें. इसीसे स्नान करालें ताकि अलग-अलग स्नान कराने की आवश्यकता नहीं रहेगी. यदि प्रतिमा के स्थान पर तस्वीर है तो पुष्प से जल और अन्य सामग्री के छींटे देकर स्नान की प्रक्रिया को प्रतीकात्मक रूप से किया जा सकता है. वैसे स्नान क्रिया का महत्व प्रतिमा के साथ ही अधिक है. इससे प्रतिमा की सफाई होने के साथ-साथ आपका ध्यान प्रतिमा के माध्यम से ईश्वर में केन्द्रित होने लगता है.
- कलश स्थापना : गणपति पूजन के उपरांत कलश की स्थापना और पूजन किया जाता है। पूजन के स्वच्छ स्थान पर गेंहू की छोटी सी ढेरी बनाकर उसके ऊपर स्वच्छ जल से भरा लोटा रखें। लोटा ताम्बे का हो तो श्रेष्ठ है पर वह न हो तो अन्य लोटा काम में लिया जा सकता है या मिटटी की नयी छोटी मटकी का उपयोग भी कर सकते हैं. पर प्लास्टिक का लोटा काम में न लें क्योंकि वह गन्दा हो सकता है.धातु का लोटा भी अच्छी प्रकार से साफ़ किया हुआ होना चाहिए. लोटे पर पान अथवा आम अथवा अशोक के पत्ते पर व्यवस्थित रूप से नारियल रखें. लोटे के गले में लच्छा बांधकर उसके चारों और अनामिका अंगुली से कंकू की पांच बिंदियाँ लगाएं.
- अब कलश पूजन करें. कलश पर जल के छींटें दें(स्नानम् समर्पियामी बोले). उसके बाद लच्छा(वस्त्रं समर्पियामी बोले), कंकू(गंधकम् समर्पियामी बोले), चावल(अक्षतम् समर्पियामी बोले) और पुष्प(पुष्पम् समर्पियामी बोले) : जहाँ पर भी कोष्ठक में समर्पियामी शब्द लिखा गया है इसका तात्पर्य है कि वह वाक्य बोला जाना चाहिए मन में बोले चाहे ध्वनि निकलते हुए बोले)
पौराणिक सूत्रों के अनुसार पय स्नान के लिए प्रयुक्त मन्त्र का अर्थ है - कामधेनु से उदभूत, सब जीवों के जीवन का आधार, पवित्र एवं यज्ञ के लिए प्रयोग में लाया जाने वाले दुग्ध, हे देव, आपको स्नान के लिए समर्पित करते है.
दधि स्नान- दूध से उत्पन्न, मधुर-अम्ल स्वाद वाला, चन्द्रमा के सामान प्रभा वाला दही, हे देव, आपके स्नान के लिए अर्पित करता हूँ.
घृत स्नान- नवनीत से उत्पन्न एवं सर्वतुष्ट्कारी घृत स्नान के लिए अर्पित करता हूँ.
मधु स्नान- पराग रस से उत्पन्न, स्वादिष्ट, वीर्य और पुष्टि बढ़ाने वाला मधु आपके स्नान के लिए अर्पित करता हूँ.
शर्करा- इक्षु ( गन्ना) रस से उत्पन्न, पुष्टि बढाने वाली, शुभ शर्करा मल को उतारने के लिए आपको स्नान के लिए समर्पित करता हूँ.
पंचामृत स्नान- दूध, दही, घृत, मधु व शक्कर से बना पंचामृत आपको स्नान के लिए समर्पित करता हूँ.
गंधोदक स्नान- मलयाचल पर्वत से उत्पन्न चन्दन से बनाया यह गंधोदक आपके स्नान के लिए अर्पित करता हूँ.
शुद्ध स्नान - गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, सिन्धु, कृष्णा, कावेरी का शुद्ध जल आपके स्नान के लिए अर्पित करता हूँ.
उक्त पदार्थ किसके प्रतीक हैं तथा स्नान पर विस्तृत वैज्ञानिक/वैदिक व्याख्या के लिए श्री गुलाब कोठारी, प्रधान सम्पादक, पत्रिका समूह के लेख की साईट पर देंखे.उक्त विवरण भी उन्ही के लेखों के सौजन्य से लिए गए हैं.)
- स्नान के बाद वस्त्र धारण कराएं. वस्त्र के प्रतीक के रूप में जनेऊ तथा लच्छे का टुकड़ा चढ़ाएं. यदि जनेऊ उपलब्ध नहीं है तो केवल लच्छा ही चढ़ाएं. कंकू का तिलक लगाएं. अक्षत अर्थात पुरे चावल चढ़ाएं. तत्पश्चात पुष्प या माला चढ़ाएं.सामान्यतः भक्तजन पुष्प मूर्ति या तस्वीर के मस्तक पर चढ़ाते हैं , पर यह उचित नहीं है. पुष्प सदैव चरणों में अर्पित किया जाना ही उचित है. पुष्प के पश्चात रुई के फोहे से ईत्र(सुगन्धिम् समर्पियामी बोले) लगाकर उसे मूर्ति अथवा तस्वीर पर लगायें.
- पूजा के बाद भोग लगाएं. गणपति को गुड का भोग लगाएं(नैवेद्यम समर्पियामी बोले). यदि गुड नहीं हो तो शक्कर या मिश्री का भोग ही लगादें
- भोग के बाद पान, सुपारी, ईलायची, लोंग के साथ दक्षिणा चढ़ाएं(ताम्बूलं समर्पियामी बोले). ध्यान रहे यदि इनमें से कोई भी सामग्री उपलब्ध नहीं है तो कोई बात नहीं जो उपलब्ध हो उसे ही चढ़ा कर ध्यान कर ले कि पान समर्पित कर रहें हैं.
- गणपति पूजन के बाद सभी देवी-देवताओं, ग्रहों, गणों को पूजा में आमंत्रित करें तथा उनके नाम का उच्चारण ॐ श्री सूर्याय नमः, ॐ श्री चन्द्राय नमः,ॐ श्री मंगलाय नमः,ॐ श्री सूर्याय नमः,ॐ श्री बुद्धाय नमः, ॐ श्री ब्रहस्पताय नमः, ॐ श्री शुक्राय नमः,ॐ श्री शनिश्चाराय नमः,ॐ श्री राहवे नमः,ॐ श्री केतवे नमः करते हुए एक पुष्प गणपति की प्रतिमा के पास रखकर उस पर कंकू, अक्षत चढ़ा दें.
- यह पहला चरण पूरा हुआ. कुल मिलाकर इस सम्पूर्ण प्रक्रिया में अधिक से अधिक दस मिनट का समय लगेगा.
- ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्णमुदच्यते , पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवाशिष्यते, ॐ शांतिः शान्तिः शांतिः।
द्वितीय चरण- मुख्य पूजन एवं कथा
- जिस किसी भी देवता या देवी की पूजा की जा रही है उनकी प्रतिमा अथवा तस्वीर को उसी प्रकार स्थापित करें जैसे की गणपति को स्थापित किया जाता है.
- पूजा की सारी प्रक्रिया और क्रम भी उसी प्रकार रहेगा जैसी कि गणपति पूजन में रही है. बस कुछ अंतर रहता है जिसका वर्णन सम्बंधित पूजा में किया जाएगा.
- यहाँ गुड़ के भोग के अलावा अन्य भोग भी लगाया जाता है जो कि पूजा विशेष के अनुसार हो सकता है पर सामान्यतः मावे का प्रसाद अवश्य होता है ताकि व्रत उपवास वाले भी प्रसाद ग्रहण कर सकें.
- यदि पूजा के पश्चात कथा कही जानी है तो उसे अब प्रारम्भ किया जा सकता है.
तृतीय चरण :-
- यदि धूप दी जानी है तो दी जा सकती है.
- अब आरती की जाती है.
- आरती 5 बत्तियों से की जाती है. यदि 5 बत्ती लगा सकें ऐसा आरती का पात्र नहीं है तो पतली लम्बी 5 बत्तियों को मिलाकर एक बाती बना लें तथा उसे प्रज्वलित कर आरती करें.
- आरती के साथ यदि उपलब्ध हो तो आरती का गायन भी साथ में करलें. यदि नहीं है तो कोई बात नहीं. आज से सैंकड़ों वर्ष पूर्व कोई शाब्दिक आरती नहीं थी अतः आरती का गायन हो ही यह आवश्यक नहीं है. आरती के समय घंटी एवं शंख की ध्वनि का भी बहुत महत्व है अतः इनको बजाया जा सकता है.
- आरती सदैव क्लॉक वाइज दिशा में धीमे धीमे वृत्ताकार घुमाई जाती है. वैसे ॐ का आकार बनाते हुए भी घुमाया जा सकता है.
- फिर कर्पुर आरती की जाती है. इसके लिए कर्पुर जला कर आरती करते हैं. इसे सभी दिशाओं में घुमाते हैं.इसके साथ नीचे दिया गया श्लोक भी बोला जाता है हालांकि यह शिव स्तुति है परन्तु संभवतः इसमें कर्पुर शब्द आ जाने से इसको गाया जाता है. यह भी हो सकता है कि पूजा के अंत में शिव स्तुति का प्रावधान किया गया हो . खेर जो भी हो महत्व कर्पुर आरती का है. इसी श्लोक के माध्यम से शिव स्तुति भी हो जाए तो एक पंथ दो काज वाली बात हो जाती है.
- श्लोक : कर्पुरगौरं करुणावतारम, संसारसारं भुजगेन्द्रहारम,सदा वसंतम हृदयार्वंदे, भवम भवानी सहितं नमामी.
- कर्पूर आरती के बाद जल से शीतला आरती की जाती है। जल के छोटे के पात्र को तीन बार आरती जैसे घुमाकर दोनों और कुछ जल छोड़ा जाता है।
- शीतला आरती के बाद उपस्थित सभी भक्तों को आरती दी जाती है। आरती लेते समय थल में कुछ भेंट रखी जाती है जो कि पुरोहित को जाती है।
- अंत में पुष्पांजलि अर्पित की जाती है। (पुष्पांजलिम् समर्पियामी )
- मन्त्र पुष्पांजलि --
ते ह नाकं महिमानः सचंते यत्र पूर्वे साध्याः शान्ति देवा।
राजाधराजाय प्रसह्यसाहिते नमो वय वैश्रवणाय कुर्महे।
स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु।
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः।
ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यम् वैराज्यें पारमेष्ठयं राज्यं
महाराज्य्माधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौम सार्वायुष आंतादाप्रार्धात्।।
पृथ्वीव्ये समुद्रपर्यन्ताय एकरादिति तदप्येष
श्लोकोअभगीत मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन गृहे।।
अगले ब्लॉग में श्री सत्यनारायण व्रत कथा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें