रविवार, 9 फ़रवरी 2014

puja,wrat,upwas, kathayen aur unake sandesh - Bachhbaaras ki kahani - font used KrutiDev 010

बछ बारस (गोवत्स-द्वादशी ) 


  • बछ बारस का  त्यौहार भाद्रपद कृष्ण-पक्ष की द्वादशी (बारस) को आता  है। 
  • बछ बारस का  पर्व भी पुत्र की मंगल कामना के लिए किया जाता है।
  •  बछ बारस के दिन पुत्रवती माताओं द्वारा  गाय और बछड़ों का पूजन किया जाता है। 

पूजन विधि 

  • बछ बारस के दिन गाय और बछड़े की पूजा की जाती है।  यदि बछड़े वाली गाय उपलब्ध  न हो तो  गीली मिट्टी  से गाय एवं बछडे की मूर्तियां बनाकर एक पटिये पर रखकर उनकी पूजा की जाती है।
  • गणेशजी की स्थापना कर पूजा करें। पूजन विधि 8 फ़रवरी 2014 के ब्लॉग में दी गई है। 
  • गाय बछड़े की पूजा भी इसी प्रकार करें। 
  • इन पर दही, भीगा हुआ मोटा  अनाज जैसे मक्का/बाजरा, उसका आटा, घी आदि चढ़ाये। 
  • बायना निकाल कर सासुजी को दें। 
  • मोटे अनाज से बना भोजन करें, गाय का दूध-दही, गेहूं, चाकू से कटी सब्जी और चावल का प्रयोग न करें। 
  • अपने पुत्र के कमीज पर स्वस्तिक बनाकर/तिलक लगाकर जटायुक्त नारियल देवें तथा कुए की पूजा करें। कुए के प्रतिक के तौर पर गोबर/मिटटी  से घेरा बनाकर उसमे पानी भर कर पूजन किया जाता  है।कुछ समाजों में पुत्रियों  को नारियल का आधा गोला शक्कर भरकर दिया जाता है। 

बच बारस की कथा 

(अलग अलग अंचल में अलग अलग कथाएं प्रचलित हैं यहाँ एक कथा दी जा रही है जिसका सबसे अधिक वाचन होता है )
एक साहूकार था।  उसके सात बेटे-बहु और कई पोते थे। उसने एक तालाब बनवाया। बारह बरस निकल गए पर वह तालाब पानी से नहीं भरा। उसने एक पंडित से कारण पूछा तो पंडित ने बताया कि बड़े बेटे या बड़े पोते की बली देने से इसमें पानी आ जाएगा। यह जानकर साहूकार ने अपनी बड़ी बहु को पीहर भेज कर पीछे से बड़े पोते की  बली देदी। बली  के बाद संयोगवश  जोरदार बरसात से तालाब में पानी भर गया। आगे जब बछ बारस आई तो उसकी पूजा करते हुए सेठानी ने दासी से कहा कि तू गेहूं ला कर पका लेना और धान ला कर उछेड़ लेना। गेहूंला और धानुला गाय के दोनों बछड़ों के नाम थे। पूजा वाले दिन बड़ी बहू भी आ गई थी उसको अपना बड़ा बेटा दिखाई नहीं दिया, उसने सोचा कि  कहीं खेल रहा होगा। पूजा के बाद जब सारे पोते-पोती खेल रहे थे तो तालाब में से कीचड़ से लथपथ बड़ा पोता जिसकी कि बली दी गई थी निकला और बोला मैं भी खेलूंगा। उसे देखकर बहु ने अपनी सास से पूछा कि  यह सब क्या चक्कर है, तो सास ने दुखी मन से सारी  बात समझा दी दोनों ने बछबारस को धन्यवाद दिया कि  है माँ  तूने हमारी लाज रखदी। जब वे घर पर पहुंची तो देखा कि गाय के बछड़े नहीं है तो दासी से पूछा। दासी ने बताया कि  आपके  कहने से मैंने तो उन्हें काट कर पका दिया।  सासु बोली, " अरे पगली ये क्या किया तूने, घोर अनर्थ हो गया, मैंने तो गेहूं और धान पकाने के लिए कहा था तूने गलत समझ कर बहुत बड़ा पाप कर दिया । " साहूकार भी बहुत नाराज हुआ और बोला , " अरे मूर्खा, एक बार और पूछ लेती,एक पाप का प्रायश्चित करके आये और तूने दूसरा भयंकर पाप सिर पर चढ़ा दिया। हे माता इसका प्रायश्चित कैसे होगा। " यह कहते हुए उसने पकाए हुए बछड़ों को गड़वा दिया। शाम को जब गायें लोटी तो उनको अपने बछड़े दिखाई नही दिए। गायों ने उस जगह पर खोदा तो जीवित बछड़े निकले।  वे दौड़ कर अपनी माँओं का स्तनपान करने लगे। साहूकार ने जब यह देखा तो उसको प्रसन्नता भरा  आश्चर्य  हुआ। यह देखकर सबको विश्वास हो गया कि यह सब बछ बारस की पूजा का प्रताप है। यह सब उसीकी कृपा से हुआ है। उसने सारे गाँव में यह सूचना भिजवादी की अब से सभी समाजों की माताएं बछबारस के दिन बछड़े वाली गाय तथा कुए-तालाब की पूजा करेगी। 
हे बछबारस माता जैसे साहूकार-साहुकारनी के बच्चों को बचाया और गौ माता के बच्चों को जीवित कर उनकी लाज रखी वैसे ही सबकी संतानों की रक्षा करना और उनकी लाज रखना।  

अनुकरणीय सन्देश -

  • बली देना पाप है। बलि देने से वर्षा नहीं होती है। 
  • गौधन पूजनीय है इसलिए उसकी पूजा की जानी चाहिए। 
  • किसी भी बात को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। यदि किसी प्रकार का भ्रम हो तो दुबारा पूछ कर स्पष्ट कर लेना चाहिए।   

 गणेश जी की कथा -

एक गाँव में सुरेश और उमेश दो कुबड़े साथ-साथ रहते थे। सुरेश बहुत धनी  और उमेश बहुत गरीब था। दोनों में गहरी मित्रता थी तथा दोनों ही गणेशजी के परम भक्त थे। एक दिन उमेश ने  सुरेश से कहा , " मैं तुम पर बोझ बनकर नहीं रहना चाहता हूँ। तब सुरेश ने कहा, " ऐसा करो तुम मेरे काम में हाथ बंटा दिया करो। "  उमेश ने उसकी बात रखते हुए हर काम में सहयोग करना प्रारम्भ कर दिया। धीरे धीरे सुरेश उमेश से बहुत अधिक काम लेने लग गया। वह अपमान भी करने लग गया, व्यवहार भी रुखा हो गया। एक दिन दुखी होकर उमेश वन में चला गया। उसने अपने आराध्य गणेश जी को याद किया।  गणेश जी पहले से ही उमेश की अवस्था से परिचित थे। वे एक यक्ष क रूप धरकर उमेश के समक्ष प्रकट हुए। उस पर दया कर उन्होंने उसे एक सोने के सिक्कों से भरी थैली दी और कहा , "  यदि  सदैव अच्छा आचरण करोगे तो तुमको इस थैली से हर आवश्यकता के समय सिक्के मिलते रहेंगे। " यह कहते हुए उसकी पीठ पर हाथ फेरा।  इससे उसकी कूबड़ गायब हो गई। जब उमेश  घर गया तो उसने सारी  बात सुरेश को भी बता दी।  सुरेश के मन में लोभ जागा । वह भी जंगल में गया, गणेश जी को याद किया, यक्ष रूप में गणेश जी उसके सामने प्रकट हुए, गणेश जी उसके मन के लोभ को जानते थे, उन्होंने उसकी पीठ पर हाथ फेरा तो एक कूबड़ और हो गई, सिक्कों की थैली भी नहीं दी। उमेश घबरा गया। उसने अपने किये के लिए क्षमा करने की प्रार्थना की।  गणेश जी ने कहा, " तूने अपने मित्र का दिल दुखाया है, उसके साथ दुर्व्यवहार किया है, लोभ किया है,  इसकी सजा तो भुगतनी ही होगी। परन्तु तू मेरा भकत है इसलिए यदि तू अपने किये पर सच्चे मन से सुरेश से क्षमा मांग ली तो तेरी कूबड़ ठीक हो जायेगी। " उमेश गणपति का आभार व्यक्त करते हुए शीघ्रता  से घर गया। उसने मित्र से सच्चे मन से क्षमा प्रार्थना की।  उसका कष्ट दूर हो गया।  
हे गणेशजी जैसे  तुमने सही आचरण करने वाले उमेश को दिया और सुरेश को क्षमा किया वैसे ही सबके साथ करना ।  

अनुकरणीय सन्देश -

  • सदा सत्कर्मों के पथ  पर चलें। 
  • भगवान भी उन्हीं का साथ देता है जो सदाचारी होते हैं। 
  • अनावश्यक किसी को तंग करना स्वयं को दुःख पहुँचाता है।  
  • लालच बुरी बला  है। 
  • सच्चे मन से किया गया प्रायश्चित मन की ग्लानि को दूर करता है। 
  


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