गुरुवार, 6 फ़रवरी 2014

Puja, wrat, upwas,kathayen aur unake sandesh

पूजा, व्रत,उपवास, कथाएँ और उनके सन्देश ब्लॉग के बारे में - 

प्रारम्भ 
 व्रत&उपवास भारतीय धर्म का एक अभिन्न अंग है। ये हमारी लौकिक तथा आध्यत्मिक प्रगति के सशक्त साधन हैं] रोजाना कोई न कोई त्यौहार या व्रत होता ही है। व्रत करने से संयम नियम का पालन ]देवता की आराधना तथा लक्ष्य के प्रति जागरुकता प्राप्त होते हैं। वेदों में कहा गया है
             व्रतेन दीक्षामाप्नोति दीक्षायापनोति दक्षिणाम। 
             दक्षिणा श्रद्धामाप्नोति श्रद्धया सतयमाप्यते। 
  अर्थार्थ व्रत धारण करने से मनुष्य दीक्षित होता है। दीक्षा से उसे दक्षता और निपुणता प्राप्त होती है। दक्षता की प्राप्ति से श्रद्धा भाव जागृत होता है और श्रद्धा से ही सत्य स्वरूप ब्रह्म की प्राप्ति होती है। 
   कई व्रतों के साथ कोई न कोई कथा जुड़ी होती है जिसको कि  महिलाएँ सुनती और सुनाती हैं। कई बार महिलाओं को कोई पुस्तक उपलब्ध नहीं हो पाती है विशेषकर विदेशों में रह रहीं युवा महिलाओं को यह समस्या अधिक सताती है। इस ब्लॉग में संक्षिप्त पूजन विधि और कुछ महत्वपूर्ण कथाओं को दिया जाएगा। कथाओं के साथ उनमे अन्तर्निहित सन्देश भी दिए जायेगे ।आज के युग में कामकाजी महिलाओं को समय का अभाव होता है पर भारतीय संस्कृति में पली&बढ़ी महिलाएँ अपने सांस्कृतिक मूल्यों और विश्वासों के तहत व्रत&उपवास भी करना चाहती हैं] अतः कथाओं को संक्षिप्त रूप में देने का प्रयास किया गया है। स्थान&स्थान पर पूजन के दौरान की जाने वाली क्रियाओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्पष्ट करने का प्रयास भी किया जाएगा । जिसे कोष्ठक में दिया जाएगा। हो सकता है कि आप मेरी बात से सहमत न हों पर मेरा आशय आपकी आस्था और श्रद्धा को ठेस पहुंचाने का कतई नहीं है।
प्रारम्भ में सरल पूजन विधि दी जाएगी। हमेशा कोई जानकार पंडित या पुजारी उपलब्ध हो यह जरूरी नही है। अतः यदि हम पवित्र मन से इस प्रक्रिया को अपनाकर पूजा कर सकें तो शुभ फलदायक होता है। शास्त्रों में कहा गया है कि कुपात्र से पूजा कराने अथवा उसे दान देने पर शुभ फल नहीं मिलता है।
जिससे हम पूजा करवा रहें हैं वह किस प्रवृति का है हम नहीं जानते अतः यदि स्वयं पूर्ण विधि&विधान से पूजा करें तो अधिक फलदायक होता है क्योंकि हम पूजा पूरे मनोयोग से करते हैं।
पुजारी को तो कई बार अन्य जगह पूजा कराने जाना होता है ऐसी स्थिति में यह सम्भावना रहती है कि वे पूरे मनोयोग से पूजा न करा सके।       
कथाओं का महत्व
कथाएँ हमें कोई न कई सन्देश देतीं हैं। ये कही इसीलिए जाती हैं ताकि उसे सुनने वाला कुछ सीखे।
यदि कथाओं को ध्यानपूर्वक सुनकर उसमें निहित संदेशों को ग्रहण करें तो ही उसका प्रतिफल मिलता है अन्यथा हम अपना समय ही बर्बाद करते हैं। कथा का वाचन धीमी गति से किया जाना चाहिए।  जल्दी जल्दी वाचन करना खानापूर्ति करने के समान है। हालांकि महिलाओं को दिन भर के व्रत के बाद भूख लग रही होती है पर पूर्ण लाभ के लिए यह जरूरी है। कथा के दौरान अनावश्यक बातों में अपना मन नहीं लगाना चाहिए।  विशेषकर तेरी&मेरी करना हमारी फितरत है पर कम से कम कथा&पूजा के दौरान यह न करें तो बेहतर रहेगा। आजकल तो मोबाईल फोन भी पूजा में एकाग्रत प्राप्त करने में बाधा पहुंचाते हैं।कथा सुनने वालों का तो सारा ध्यान ही स्मार्ट फोन की स्क्रीन पर रहता है।  कथा का बार&बार वाचन करने या सुनाने से उनमें निहित संदेशों पर बार&बार विचार करने का अवसर मिलता है।  यह आवश्यक नहीं कि एक ही बार में उन संदेशों को हम आत्मसात करलें। बार&बार के मनन से धीरे&धीरे व्यक्ति उनका अनुकरण करने लगता  है। समय व्यतीत होने के साथ वे सन्देश व्यवहार में परिलक्षित होने लगते हैं जिससे उसका जीवन सच्चे मानवीय मूल्यों युक्त हो जाता है और जीवन में कुछ सार्थक करने का संतोष एवं मन को शान्ति और अंततः उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

अगले ब्लॉग तक के लिए विदा & उसमें हम सरल पूजन विधि पर बात करेंगे 

इस ब्लॉग पर आपके सुझाव सादर आमंत्रित हैं। 


    
  

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