करवा चौथ
यह व्रत कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को सुहागन स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु एवं अच्छे स्वास्थ्य की मंगल कामना करने के लिए किया जाता है। इसे करक चतुर्थी भी कहते हैं। यह वर्ष भर की महत्वपूर्ण चार चौथ में से एक है। यह व्रत पति-पत्नी के पवित्र बंधन का प्रतिक है।
विधि-
- प्रातःकाल स्नानादि से निवृत होकर सुहागिन स्त्री के समस्त वस्त्राभूषण से विभूषित होकर गणेशजी (चौथ माता) का पूजन करने का विधान है।
- शिव-पार्वती एवं कार्तिकेय का पूजन भी किया जाता है।
- पूजन में जल से भरे मिट्टी के करवों की पूजा की जाती है। करवा चौथ की कथा कहें।
- वैसे आजकल सारी पूजा सांय काल को की जाती है।
- दिन भर निराहार रहा जाता है, जल भी नहीं पिया जाता है।
- रात्रि में चन्द्रमा को अर्क दिया जाता है। उसके बाद पति या देवर द्वारा करवे से व्रती को जल ग्रहण कराया जाता है। इसके बाद मिष्ठान युक्त भोजन किया जाता है।
- सामान्य पूजन का सम्पूर्ण तरीका उसी तरह से है जैसे 9 फ़रवरी 2014 के ब्लॉग में बताया गया है।
- आगे दो कथाये दी जा रहीं हैं। एक पौराणिक कथा है तथा दूसरी आम जान में प्रचलित कथा है। कोई भी कथा कही जा सकती है।
करवा चौथ की पौराणिक कथा-
महाभारत काल में पांडव वनवास पर थे। इस समय अर्जुन इन्द्रनील पर्वत पर तप करने गया हुआ था। जब कई दिनों तक अर्जुन नहीं लौटा तो द्रौपदी को चिंता हुई। एक दिन जब श्रीकृष्ण पांडवों से मिलाने आये तो द्रौपदी ने अपनी चिंता से उन्हें अवगत कराया। श्रीकृष्ण ने कहा, " हे कृष्णे, तुम अपने पति की कुशलता के लिए करवा चौथ का व्रत करो।" द्रौपदी ने पूछा, " भैया, मैं इस व्रत का माहात्म्य जानना चाहती हूँ। कृपया मुझे बताएं ।" श्री कृष्ण बोले- सुनो, भगवान आशुतोष ने इस सम्बन्ध में एक कथा माता पार्वती को सुनाई थी वह मैं तुम्हे सुनाता हूँ। इंद्रप्रस्थ नगरी में वेदशर्मा नामक एक विद्वान ब्राह्मण के सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। पुत्री का नाम वीरावती था। उसका विवाह एक सुदर्शन नामक युवक के साथ हुआ। ब्राह्मण के सातों पुत्र विवाहित थे। एक बार करवा चौथ के व्रत वाले दिन सभी भाभियों ने तो व्रत पूर्ण विधि विधान से सफलता पूर्वक कर लिया परन्तु वीरावती अल्पायु के कारण व्रत की कठोरता को सहन नहीं कर पाई। दिनभर निर्जल रहकर भूख को शान न कर पायी और निढाल हो गई। उसके भाइयों से अपनी प्यारी बहिना का यह हाल देखा न गया। भाइयों की चिंता पर भाभियों ने बताया की भूख के कारण वीरावती का यह हाल हुआ है। यह सुनकर भाइयों ने खेत में जाकर आग जलाई और उसपर कपड़ा तानकर चंद्रोदय जैसा दृश्य बना दिया। फिर बहन से जाकर कहा कि देख चन्द्रमा उदय हो गया है। यह सुनकर वीरावती ने अर्ध्य देकर भोजन कर लिया। नकली चन्द्रमा को अर्ध्य देने से उसका व्रत खंडित हो गया। इससे उसका पति अचानक बीमार पड़ गया। वह ठीक न हो सका। जैसे तैसे दुखी मन से दिन निकल रहे थे। एक बार स्वर्ग के राजा इंद्र की पत्नी इन्द्राणी करवा चौथ का व्रत करने के लिए पृथ्वी पर आई। इसका पता लगने पर वीरावती इन्द्राणी के पास गई और उससे अपने पति के स्वस्थ होने का उपाय पूछा। इन्द्राणी ने कहा कि तुम्हारा व्रत खंडित हो गया था इसलिए ऐसा हुआ है। अगर तू पूर्ण विधि विधान से पुनः करवा चौथ का व्रत बिना खंडित हुए करेगी तो तेरा पति स्वस्थ हो जाएगा। वीरावती ने ऐसा ही किया। उसका पति पूर्णतया स्वस्थ हो गया। हे कृष्णे तभी से करवा चौथ का व्रत प्रचलित है। व्रत की महिमा सुनकर द्रौपदी ने भी व्रत किया फलस्वरूप शीघ्र ही अर्जुन लौट आया।
प्रचलित कथा -
एक नगर में एक साहूकार था। उसके सात बेटे-बहु और एक सबसे छोटी बेटी थी। आठों भाई-बहिन साथ बैठकर भोजन करते थे। एक दिन भोजन के समय बहिन नहीं दिखी तो भाइयों ने उसे बुलाया तो उसने यह कहकर कि आज करवा चौथ का व्रत है इसलिए मैं चाँद उगने के बाद अर्ध्य देकर ही भोजन करुँगी। यह सुनकर भाइयों ने अपने साथ ही बहिन को भोजन करानेके लिए एक उपाय किया। उनमें से तीन भाइयों ने एक टीले के पीछे जाकर एक दिया जलाया और उसके सामने एक छलनी रखदी जिससे चन्द्रमा की आकृति बन गई। अन्य भाइयों ने बहिन से कहा देख चाँद उग आया। वो भोली बहिन अपनी भाभियों के पास गई और बोली - चलो, अर्ध्य देते हैं, चाँद उग आया है। … उसकी भाभियों ने अपनी प्यारी ननंद से ठिठोली करते हुए कहा - जाओ ननन्द बाईसा, अभी तो तुम्हारा चाँद उगा है, हमारा तो बाद में निकलेगा।.… ननंद मजाक को सच समझ बैठी और पूजा करके भाइयों के साथ जीमने बैठ गई। पहला ग्रास लेते ही बाल आ गया, दूसरे में छींक आ गई और तीसरा ग्रास हाथ में लिया ही था कि उसके ससुराल से उसे लिवाने आ गए क्योंकि उसके पति की तबियत बहुत ख़राब थी। उसे विदा करने के लिए उसे अच्छी साड़ी पहनाने के लिए पेटी खोली तो सफ़ेद साड़ियां ही निकली। मजबूरी में सफ़ेद साड़ी में ही विदा किया। विदा करते हुए उसकी माँ ने उसे एक स्वर्णमुद्रा देकर कहा- मार्ग में जो भी मिले उसे धोक लगाना, जो तुझे सदा सुहागन रहो कहे उसे यह मुद्रा देकर अपनी साड़ी के पल्लू में गाँठ लगा लेना। … मार्ग में जो भी मिला उसके उसने धोक लगाईं, सबने एक ही आशीर्वाद दिया कि तुझे भाइयों का सुख मिले। जब वह ससुराल पहुंची तो वहाँ द्वार पर ही उसका इंतज़ार करती उसकी सबसे प्यारी बड़ी ननंद मिली। उसने बड़ी ननंद के धोक दी। ननंद ने उसे गले लगाकर आशीर्वाद देते हुए कहा - शील-सपूती हो, सात पुत्रों का सुख देख, मेरे भाई का सुख देख। .... यह सुनकर बेटी ने स्वर्ण मुद्रा अपनी ननंद को दे दी और साड़ी के पल्लू में गाँठ लगा ली। अंदर गई तो सास ने रूखे स्वर में कहा- ऊपर जा, वहां तेरे पति की लाश पड़ी है, उसके पास जाकर बैठजा।
वह ऊपर जाकर बैठ गई और पति के शव के ऊपर पंखे से हवा करने लगी। वह उसके पति के शव का ऐसी सार-संभार करने लगी जैसे की वह सो रहा हो। उसने दाह संस्कार के लिए शव भी नहीं ले जाने दिया। उसकी सुहाग की निशानियों को जब दूसरी महिलाओं ने मिटाना चाहा तो उसने भारी विरोध किया। उसकी बड़ी ननंद ने उसकी बात को रखते हुए सब महिलाओं को भगा दिया और स्वयं भी अपना आशीर्वाद दोहराती हुई नीचे चली गई। इससे उसकी सास और गुस्सा हो गई। बेटी पति के शव के पास बैठी रहती। उसकी सास उसके लिए बची-खुची रोटी-दाल दासी के हाथ भिजवा देती थी। एक महीना बिता तो मक्सर् माह की चौथ माता आ गई। मक्सर् की चौथमाता ने आवाज लगाई - करवा ले-करवा ले, भाइयों की लाड़ो करवा ले, दिन में चाँद उगाने वाली करवा ले, अपने पति को खोने वाली करवा ले।.… बेटी बोली - हे चौथ माता, मैं वैसे ही दुखी हूँ, मेरी मजाक मत बनाओ, ये बिगड़ी अब तुम्हे ही सुधारनी है। तुझे मेरा सुहाग लौटाना पडेगा। … चौथ माता बोली - पोष माह वाली माता मुझसे बड़ी है वही तेरा सुहाग लौटा सकेगी। … यह कर चौथ माता चली गई। इस तरह हर महीने की दोनों चौथ माताएं आती और आगे वाली मुझसे बड़ी है कहकर चली जाती। ऐसा करते हुए ग्यारह महीने बीत गए। आसोज माह की चौथ भी आई, वह बेटी के दुःख से दुखी होकर बोली- बेटी, तेरे से जो भूल हुई है उसके लिए करवा चौथ तेरी परीक्षा ले रही है। तेरा पति मरा नहीं हैं, वह केवल बेहोश है। तू अगली करवा चौथ के पैर पकड़ लेना और तब तक मत छोड़ना जब तक वो तेरे पति को स्वस्थ करने का वचन न देदे। … आखिर कार्तिक माह की करक चौथ यानी करवा चौथ आई और आवाज लगाई - करवा ले करवा ले, भाइयों की दुलारी करवा ले, दिन में चाँद उगाने वाली करवा ले, व्रत को तोड़ने वाली करवा ले, पति को खोने वाली करवा ले।
साहूकार की बेटी ने जैसे करवा चौथ को देखा उनके पैर पकड़ लिए और रोते हुए बोली - हे चौथ माता, तू तो अंतर्यामी है, तू तो जानती ही है, मैं नासमझ अपने भाइयों के बहकावे में आ गई, मैंने जानबूझ कर तेरा अपमान नहीं किया। इस भूल का प्रायश्चित करते हुए मुझे पूरा एक बरस हो गया है। हे माता अब तो मुझे क्षमा करदे, दया कर मेरे पति की बिमारी ठीक कर उसे मुझे लौटा दे। .... करवा चौथ ने नकली क्रोध दिखाते हुए कहा - हे पापिन, हत्यारिन, व्रत भंग करने वाली, मेरे पाँव छोड़। तुझे अपनी करनी का फल तो भुगतना ही पड़ेगा। … बहु बोली - हे माता, इतनी निष्ठुर मत बन, जो भी हुआ उसमें मेरी कोई गलती नहीं थी, मेरी जरासी भूल की यदि तू इतनी बड़ी सजा देगी तो तुझे कोई नहीं पूजेगा, मेरी बिगड़ी को तुझे ही सुधारना होगा, जब तक तू मेरे पति को स्वस्थ करने का वचन नहीं देती मैं तेरे चरण छोड़ने वाली नहीं। … यह कहकर वह माता के चरणो से लिपट गई। चौथ माता तो वैसे भी उसकी परीक्षा ले रही थी उसने प्रसन्न होकर अपनी आँखों से काजल, मांग से सिंदूर, बिंदी से कंकु तथा हाथों से मेहंदी निकालकर छोटी अंगुली से पति के शरीर पर छींटा दिया। पति एकदम से घोर मूर्छा से बाहर आ गया। वह उठकर बैठ गया। तथा पत्नी से बोला - आज तो बहुत गहरी और लम्बी नींद आई। बहु बोली - कैसी नींद, मुझे बारह महीने हो गए हैं आपकी देख भाल करते हुए, करवा चौथ माता के प्रताप से फिर से होंश में आये हो, वैद्यों ने तो आपको मरा हुआ ही घोषित कर दिया था, पर मुझे चौथ माता पर पूरा भरोसा था, आज उन्होंने ही मेरे को सुहाग लौटाया है। .... पति ने कहा तो तुम्हे चौथ माता की विधिवत पूजा करनी चाहिए। पति के कहने पर बहु ने करवा चौथ की पूजा की, करवा मनसा, चाँद को अर्ध्य दिया। फिर दोनों हंसी-ठिठोली करने लगे। दासी रोटी लेकर आई तो उसकी ख़ुशी का ठिकाना नही रहा। वो दौड़ी-दौड़ी नीचे सासुजी के पास गई और बेटे के जीवित हो जाने की बात बताई। सास ऊपर गई, बहु ने सासु के धोक लगाई, बहु ने बताया कि वो चौथमाता से अपने पति वापस ले आई है। सास ने उसे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया और सारे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि सब सुहागन स्त्रियां अपने सुहाग की रक्षा के लिए तेरह करवा चौथ का व्रत करेगा।
हे चौथ माता जैसे साहूकार की बेटी के सुहाग की रक्षा की वैसे ही सब सुहागनों के सुहाग की रक्षा करना।
अनुकरणीय सन्देश -
- सही स्थिति का पता लगाने के बाद ही कोई कार्य करना चाहिए।
- अपनी सुविधा के अनुसार किसी व्रत उपवास को तोडना उचित नहीं ।
- असंभव से दिखने वाले कार्य भी कठोर साधना, निरंतर प्रयास और ईश्वर पर आस्था रखने से सम्भव हो जाते है।
- किसी भी परिस्थिति में हताश नहीं होना चाहिए।
गणेशजी की कथा - गणेशजी ने बच्चे को डूबने से बचाया
एक सेठानी अपने आठ बरस के बच्चे के साथ तालाब के किनारे घूम रही थी । अचानक बच्चे का पांव फिसल गया और वह तालाब में गिर गया। सेठानी ने सहायता के लिए लोगों को पुकार। लेकिन आस-पास कोई समझदार बड़ा व्यक्ति नहीं था जो तैरकर बच्चे को बचा सके। सब बस बचाओ-बचाओ चिल्ला रहे थे। सेठानी ने अपने ईष्ट देव गणेशजी को याद किया। इतने में एक बालक दौड़ता हुआ आया और तालाब में कूदकर बच्चे को बचा लाया। उसने बच्चे के पेट में भरा पानी भी निकाल दिया। बच्चा ठीक हो गया। सेठानी ने बालक का धन्यवाद करने के लिए देखा तो वह बालक कहीं नजर नहीं आया। उसने लोगों से पूछा वो बालक कहाँ गया। तो लोगों ने कहा कि वो जिधर से भागता हुआ आया थो उधर ही लौट गया। सेठानी ने पूछा किधर से आया था। लोगों ने एक ओर संकेत कर दिया। सेठानी बालक को खोजती हुई उस ओर गई तो वहां कोई नहीं दिखा पर उसने देखा की वहाँ एक छोटा सा गणेशजी का स्थान था। सेठानी को समझते देर नहीं लगी कि यह चमत्कार गणेशजी का ही है। उसने हाथ जोड़कर गणेश जी को धन्यवाद दिया। बाद में सेठानी ने उस स्थान पर एक भव्य मंदिर बना दिया। आज भी उस स्थान पर लाखों लोग अपनी कामना पूर्ति के लिए आते हैं।
हे गणेशजी महाराज जैसे सेठानी के लाल की रक्षा कर सहायता की वैसे ही सबकी सहायता करना।
अनुकरणीय सन्देश -
- आपातकाल में आपके इष्टदेव आपकी सहायता अवश्य करते हैं।
- आपातकाल में अपना धैर्य न खोएं।
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