रविवार, 9 फ़रवरी 2014

puja,wrat,upwas,kathayen aur unake sandesh - chauthmata ki kahani



चौथ माता की कहानी -2 

एक साहूकार के एक बेटा-बहु थे। जब भी बहु अपने पीहर जाती तो उसके मातापिता पुछते कि तुझे क्या खाने को मिलता है तो उसका एक ही उत्तर होता था कि बाँसी खाने को मिलता है। एक बार जब जमाई ससुराल पत्नी को लेने गए तो उसकी सास ने पूछ  ही लिया कि तुम लोग मेरी बेटी को ताजा भोजन क्यों नहीं देते हो? जमाई को बहुत आश्चर्य हुआ, उसकी माँ तो बड़े प्यार से अपनी बहु को एकदम ताजा और गरम भोजन कराती है फिर यह झूंट क्यों बोलती है। जमाई अपने घर आया, माता से पूछा, माता ने कहा- आज तू खुद ही देख लेना कि मैं कैसा भोजन कराती हूँ।  बेटे ने कहा मुझे विश्वास है फिर भी उसने देखा कि माँ एकदम गरमा गर्म फुलके सेक कर मनवार कर करके बहु को भोजन करा रही है। पर जब उसी दिन बहु के पिता जी आये तो फिर से बहु ने बाँसी भोजन की बात दोहरा दी। यह सुनकर बेटे का पारा सातवे आसमान पर चढ़ गया। वो बुरी कदर अपनी पत्नी पर बिफरते हुए बोला - तुझे शर्म नहीं आती है, झुंट बोलकर मेरे माता पिता को बदनाम करती है। बहु एकदम शांत स्वर में बोली - पतिदेव, आप तो कमाते हो नहीं , मैं तो स्वसुर जी का कमाया ही खाती हूँ , भला उसे मैं तुम्हारा दिया भोजन कैसे मानलूं , मेरे लिए तो वह भोजन बाँसी भोजन के समान ही है।-- 
यह सुनकर बेटे की आँखे खुल गई और वह कमाई करने के लिए विदेश के लिए निकल पड़ा। एक दिन बहु ने पड़ोस के घर में चौथ  माता का पूजन होते देखा  और कथा सुनी। उसने वृद्धा पड़ोसन से पूछा - माई ये किसका व्रत कर रही हो।  वृद्धा  ने कहा - यह तिथियों की माता चौथ माता का व्रत है, यह  सारे व्रतों में श्रेष्ठ व्रत है , यह तिथि गणेश जी की तिथि है इस लिए इस दिन गणेश जी की पूजा होती है। इस व्रत को करने से धन-दौलत, संतान, बिछड़ा पति, खोया वैभव आदि सब मिल जाते हैं। 
बहु ने भी अगली चतुर्थी से व्रत प्रारम्भ कर दिया। सासू उसे दिन में चार बार खाने को देती थी।  व्रत  वाले दिन एक बार के भोजन को बायना के लिए रख देती, दूसरी बार का गाय को देती, तीसरी बार का राख में गाड़ देती और चौथी बार का चाँद को अर्क देने के बाद खाती। इस प्रकार व्रत करते हुए 12 साल निकल  गए। अगले वर्ष गणेश जी ने सोचा कि यदि इस बार इसे पति से नहीं मिलाया तो इसका चौथ माता से ही विश्वास उठ जाएगा। उसी रात गणेश जी ने उसके पति को सपने में कहा कि तेरी पत्नी तुझे याद कर रही है, बारह वर्ष हो गए हैं तुझे, सुबह तू उसके पास चला जा।  … उसने कहा - हे गणेश जी मेरे पास बहुत काम है, मैं उसके पास इतने कम समय में कैसे पहुँच सकता हूँ? गणेश जी ने कहा - तू चिंता मत कर, मैं बताऊँ वैसा करना तू शीघ्र पहुँच जाएगा। तू दिन उगने पर दोनों घुटने मोड़ कर वज्रासन में बैठकर चौथ माता का स्मरण करना। 
सुबह उसने ऐसा ही किया। जब वह घर पहुँचने ही वाला था कि मार्ग में एक वृद्ध सांप मिला। सांप ने कहा कि मैं तुझे डसूँगा।  बेटा बोला - मैं 12 बरस बाद घर जा रहा हूँ, वहाँ मेरी पत्नी मेरी राह देख रही है, एक बार मुझे उससे मिल लेने दे।  फिर भले ही डस लेना। --- सांप बोला - मुझे तुझ पर बिलकुल भरोसा नहीं है, जो अपनी पत्नी को इतने बरसों तक भुलाए रहा, उसका क्या भरोसा। तू अगर छत पर चढ़कर सो गया तो मैं क्या करूँगा। .... बेटा बोला - तू सीढियां चढ़कर आ जाना। ऐसा वचन देकर वह उदास मन से घर पहुंचा। घर में किसी से कुछ नहीं बोला।  थक गया हूँ, कोई छत पर मत आना, कहकर छत पर जाकर सो गया। सोने से पहले उसने एक सीढ़ी पर बालू रेत बिखेर दी, दूसरी पर एक कटोरी में दूध रखा, तीसरी पर पानी की कुण्डी रखी और चौथी पर फूल बिखेर दिए। जब रात को सांप आया तो पहले रेत में लोट लगाईं, दूध पानी पिया , फूलों की सुगंध ली। जब सांप छत पर चढने लगा चौथ माता ने सोचा कि यदि मैने इसको नहीं बचाया तो इस घोर कलियुग में कोई भी मेरा विश्वास नहीं करेगा। चौथ माता ने सांप को ढाल से ढंककर तलवार से मार दिया पर सांप का फन उछल कर  बेटे के जुते में  गिर गया। फन ने सोचा की जब वह जुते पहनेगा तब डस लूँगा। वहीँ छत पर घूम रही चीटियों ने सोचा कि इसकी लुगाई रोजाना अपने को आटा खाने को देती है तो अपने को उसके पति की रक्षा करनी चाहिए। यह सोचकर चीटियाँ फन को चट कर गई। सुबह जब बेटा नीचे नहीं आया तो माँ ऊपर देखने के लिए सीढियाँ चढने लगी तो खून दिखाई दिया।  माँ के मुख से चीख निकल गई।  चीख से बेटा जाग गया।  बेटे ने पूछा -माँ क्या हुआ।  .... बेटे ने सारी बात बताते हुए पूछा - क्या मेरे नाम से कोई व्रत-उपवास किया जो उसके पुण्य से मैं आज मरते मरते बच गया। .... माँ ने मना किया। वह बोला- तो फिर तेरी बहु ने किया होगा। .... माँ बोली - वो क्या व्रत करेगी, चार बार खाने को देती हूँ, सब खा लेती है , व्रत वगेरह उसके बस के नहीं। .... जब बहु को बुलाकर पूछा तो वह बोली - मैं रोटी तो चार बार की ही लेती थी, पर एक बार के भोजन को बायना के लिए रख देती, दूसरी बार का गाय को देती, तीसरी बार का राख में गाड देती और चौथी बार का चाँद को अर्क देने के बाद खाती थी। माँ ने कहा - मैंने तो इसे ऐसा करते कभी नहीं देखा।  … सास तो सास ठहरी वो ऐसे ही कैसे विश्वास कर लेती। उसने ब्राह्मण की लड़की को बुलाकर पूछा तो उसने कहा कि मुझे देती थी , गाय ने भी हुंकारा भरा, राख को देखा तो वहाँ सोने की रोटियों की जेट निकली।  यह चमत्कार देख कर सास को भी चौथ माता के प्रताप पर विश्वास हो गया। उसने सारे गाँव में चौथ माता का व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया कि अबसे सब चौथ माता का व्रत करेंगे। 
हे चौथ माता, जैसे तूने बहु के  सुहाग की रक्षा की वैसे ही सब सुहागनों के सुहाग की रक्षा करना। 
अनुकरणीय सन्देश-

  • बिना धूम-धडाके के पूर्ण श्रद्धा के साथ गोपनीय तरीके से किए गए व्रत का प्रतिफल भी अच्छा ही होता है। 
  • सास को अपनी बहु पर भी विश्वास करना चाहिए। 


      




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